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भारतीय बैडमिंटन: सुनहरे दौर के बाद गिरते स्तर का क्या है तोड़

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Getty Images साइना नेहवाल ओलंपिक पदक जीतने वाली भारत की पहली बैडमिंटन खिलाड़ी हैं, जिन्होंने 2012 लंदन ओलंपिक में कांस्य पदक जीता था.

आज का समय और बीते हुए अच्छे दौर को एक साथ जोड़ना हमेशा आसान नहीं होता. कई बार बदलाव को समझना मुश्किल हो जाता है.

2011 से 2023 तक भारत ने बैडमिंटन के क्षेत्र में एक सुनहरा दौर देखा, जब देश के नाम ओलंपिक, वर्ल्ड चैंपियनशिप, बीडब्ल्यूएफ़ वर्ल्ड टूर और थॉमस कप जैसे बड़े टूर्नामेंटों की ट्रॉफ़ियां जुड़ीं.

लेकिन, खेल के क्षेत्र में मुश्किलों का आना आम बात है.

इस वक्त भारतीय बैडमिंटन एक ऐसे बदलाव के दौर से गुज़र रहा है, जहां 'गोल्डन' जनरेशन के खिलाड़ी या तो रिटायर हो चुके हैं, या रिटायरमेंट के बारे में सोच रहे हैं, या फिर अपने करियर के आख़िरी दौर में हैं.

नई पीढ़ी के खिलाड़ियों में, लक्ष्य सेन (वर्ल्ड रैंकिंग 16) और डबल्स टीम के सात्विक साईराज रंकीरेड्डी-चिराग शेट्टी (वर्ल्ड रैंकिंग 10) और ट्रीसा जॉली-गायत्री गोपीचंद पुलेला (वर्ल्ड रैंकिंग 9) को छोड़कर किसी ने भी बीडब्ल्यूएफ़ वर्ल्ड टूर सर्किट पर कोई ख़ास छाप नहीं छोड़ी है.

ख़िताबों का सिलसिला लगभग रुक सा गया है.

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पूर्व वर्ल्ड चैंपियन पीवी सिंधु (वर्ल्ड नंबर 17) ने भारत से बाहर आख़िरी बार जुलाई 2022 में कोई ख़िताब जीता था. लक्ष्य ने जुलाई 2023 में जीत हासिल की थी.

पीवी सिंधु ने ये आख़िरी ख़िताब 17 जुलाई 2022 को सिंगापुर ओपन में जीता था, जो वर्ल्ड टूर सुपर 500 का टूर्नामेंट था.

दूसरी तरफ़, ऑल इंग्लैंड के पूर्व फ़ाइनलिस्ट लक्ष्य ने आख़िरी ख़िताब 9 जुलाई 2023 को बीडब्ल्यूएफ़ कनाडा ओपन में जीता था, जो वर्ल्ड टूर सुपर 500 का टूर्नामेंट था.

डबल्स में दुनिया की नंबर वन रह चुकी सात्विक और चिराग की जोड़ी ने आख़िरी ख़िताब 19 मई 2024 को थाईलैंड ओपन में जीता था. यह वर्ल्ड टूर सुपर 500 का इवेंट था.

ऐसे में लक्ष्य सेन को तराशने वाले कोच विमल कुमार कहते हैं, "ये एक कमज़ोर दौर है और खेल में ऐसे दौर आते रहते हैं. खिलाड़ियों को इसका सामना करना पड़ता है और हमें धैर्य रखना होगा और खिलाड़ियों को सही दिशा देनी होगी."

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चीन भी बैडमिंटन में बदलाव के दौर से जूझ रहा है image Getty Images साल 2018 के एशियाई खेलों में महिलाओं की डबल बैडमिंटन प्रतियोगिता का जश्न मनाती चीन की स्वर्ण पदक विजेता चेन किंगचेन (दाएं) और जिया यिफान (बाएं)

बैडमिंटन की दुनिया में जो चीन हमेशा से सबसे मज़बूत टीमों में गिना जाता है, वो भी ट्रांज़िशन यानी बदलाव के इस दौर से अछूता नहीं रहा.

साल 2018 में चीन ने नानजिंग वर्ल्ड चैंपियनशिप की मेज़बानी की थी, लेकिन अपने ही घर में उसे उम्मीद से काफ़ी कम कामयाबी मिली.

चीन को पुरुष और महिला सिंगल्स में गोल्ड नहीं मिल सका. सिर्फ़ पुरुष और मिक्स्ड डबल्स में जीत हासिल करके चीन ने अपनी साख को थोड़ा संभाला.

इस हार से आहत होकर चीन ने पूरी व्यवस्था में बदलाव किया, इसके बाद वहां पूरी बैडमिंटन व्यवस्था को दोबारा खड़ा करने की कोशिश शुरू हुई.

दो बार ओलंपिक में मिक्स्ड डबल्स का गोल्ड जीत चुके झांग जुन को अध्यक्ष बनाया गया, और उन्होंने नए कोचों की नियुक्ति की. हालांकि, इसके बावजूद हालात नहीं सुधरे.

2019 की बासेल वर्ल्ड चैंपियनशिप में चीन का प्रदर्शन और गिर गया. इस बार टीम सिर्फ़ मिक्स्ड डबल्स में एक गोल्ड जीत सकी.

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बुरी तरह से आहत चीन ने कुछ ऐसा किया, जिसकी कल्पना पहले कभी नहीं की गई थी. चीन ने पहली बार दो विदेशी कोचों की नियुक्ति की.

दक्षिण कोरिया के कांग क्यूंग जिन, जो ऑल इंग्लैंड पुरुष डबल्स के पूर्व चैंपियन हैं, उन्हें महिला युगल टीम की कोचिंग की ज़िम्मेदारी सौंपी गई.

वहीं, दो बार के ओलंपिक सिल्वर मेडल विनर यू योंग सुंग को पुरुष डबल्स के खिलाड़ियों को ट्रेनिंग देने के लिए नियुक्त किया गया. सिंगल्स टीम की जिम्मेदारी अनुभवी चीनी कोच ली माओ को दी गई.

2020 में चीन की मुश्किलें और बढ़ गईं, जब उनके सबसे महान खिलाड़ियों में से एक माने जाने वाले लिन डेन ने संन्यास ले लिया.

2024 के पेरिस ओलंपिक तक भी चीन का संघर्ष जारी रहा, जब वो पुरुष और महिला सिंगल्स में गोल्ड जीतने में नाकाम रहा.

हालांकि, अब चीन एक बार फिर ऊंचाई की ओर बढ़ता दिख रहा है. उनके स्टार खिलाड़ी शी यू की ने 16 मार्च, 2025 को प्रतिष्ठित ऑल-इंग्लैंड ख़िताब जीत लिया.

वो इस समय दुनिया की पुरुष सिंगल्स रैंकिंग में सबसे ऊपर हैं. इसके साथ ही चीन अब बाकी चार कैटेगरी में भी दबदबा बना चुका है.

पेरिस में लगा भारतीय उम्मीदों को झटका image Getty Images पेरिस 2024 ओलंपिक खेलों के दौरान ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़ महिला युगल बैडमिंटन मैच में शॉट खेलती भारत की तनिषा क्रैस्टो और अश्विनी पोनप्पा.

भारत की बात करें, तो बैडमिंटन अब भी 2024 पेरिस ओलंपिक की नाकामी से उबरने की कोशिश कर रहा है.

चौंकाने वाली बात यह रही कि मेडल के प्रबल दावेदार सात्विक-चिराग की जोड़ी क्वार्टर फ़ाइनल में हार गई, और इसके बाद लक्ष्य सेन सेमीफ़ाइनल में पिछड़ गए, जबकि उन्होंने पहले गेम में विक्टर एक्सेलसेन को पूरी तरह दबाव में ला दिया था. बाद में यही एक्सेलसेन ओलंपिक चैंपियन बने.

पूर्व वर्ल्ड नंबर 6 पारुपल्ली कश्यप इस पर कहते हैं, "हां, पेरिस ओलंपिक में खिलाड़ी नर्वस हो गए थे. ये सबसे बड़ा मंच होता है. अपने विरोधियों के सामने वो थोड़ा अटक से गए, घबराए, रणनीति भी सही नहीं बैठी और वो मैच हार बैठे जो उन्हें जीतना चाहिए था."

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फ़ॉर्म में वापसी की राह पर खिलाड़ी image Getty Images बीडब्ल्यूएफ़ वर्ल्ड चैंपियनशिप में सात्विक और चिराग की जोड़ी.

सिंधु, लक्ष्य और सात्विक-चिराग अब ख़ुद को दोबारा साबित करने की राह पर हैं.

ये चारों खिलाड़ी अपने-अपने कोच के साथ काम कर रहे हैं और अगस्त 2025 में होने वाली वर्ल्ड चैंपियनशिप से पहले अपनी लय वापस पाने के लिए मेहनत कर रहे हैं.

कोच विमल कुमार कहते हैं, "लक्ष्य को बेहद फ़िट रहना होगा. उनका खेल रिट्रीव करने और काउंटर अटैक करने पर निर्भर करता है. इस लिहाज़ से उनका स्टाइल रफ़ाएल नडाल जैसा काफ़ी फ़िजिकल है."

"इन दिनों विरोधी मैच की शुरुआत से ही उन पर पूरी ताकत से आक्रामक हो जाते हैं. लक्ष्य को उस दबाव को संभालना होगा और पलटवार करना होगा."

उन्होंने कहा, "और ऐसा तभी मुमकिन है, जब वह हवा की दिशा में खेलते हुए अपने खेल पर नियंत्रण हासिल करे."

विमल कुमार का कहना है, ''2025 ऑल इंग्लैंड चैंपियनशिप से पहले लक्ष्य ने वर्ल्ड नंबर 6 ली शी फेंग को लगातार दो मुकाबलों में हराया था, लेकिन क्वार्टर फ़ाइनल में जब वो पहले गेम में हवा की दिशा में खेल रहे थे, तब उन्होंने कई ग़ैरज़रूरी ग़लतियां कर दीं. यह चूक निर्णायक साबित हुई.''

''उन्हें ये समझना होगा कि ऐसे मौक़े बार-बार नहीं मिलते. मैं अक्सर उनसे कहता हूं कि इस उम्र में उनको हर साल दो-तीन बड़े टूर्नामेंट जीतने चाहिए."

image Getty Images लक्ष्य सेन विश्व चैंपियनशिप में कांस्य पदक, एशियाई खेलों में रजत पदक और राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण पदक विजेता हैं.

वहीं, लक्ष्य को लेकर पी. कश्यप थोड़ा नरम रुख़ रखते हैं.

उन्होंने कहा, "मुझे लगता है कि ऑल इंग्लैंड में लक्ष्य का हालिया प्रदर्शन सकारात्मक रहा. उसमें लंबे समय तक स्थिरता बनाए रखने की पूरी काबिलियत है. उन्हें अपने खेल में और विविधता लानी होगी, ताकि वो बेहतर कर सके."

"उन्हें अपनी रफ़्तार थोड़ी कम करनी चाहिए. ज़्यादा ड्रॉप शॉट्स खेलने चाहिए. थोड़ा और धैर्य दिखाना चाहिए और बीच-बीच में अचानक आक्रामकता भी लानी चाहिए."

पी. कश्यप ने कहा, "कुल मिलाकर उनके खेल में बारीक बदलाव ज़रूरी हैं और सबसे ज़रूरी बात, उन्हें बहुत फ़िट रहना होगा, क्योंकि उनका गेम हाई-इंटेंसिटी वाला है."

हालांकि, भारत ने पिछले कुछ वर्षों में जिस चीज़ में सबसे बेहतर काम किया है, वो है बैडमिंटन को फलने-फूलने का सही माहौल देना.

पारुपल्ली कश्यप याद करते हुए बताते हैं, "इसमें कोई शक नहीं कि पिछले दो दशकों में भारत में बैडमिंटन का पूरा इकोसिस्टम काफ़ी बेहतर हुआ है. अब हमारे पास कई अच्छे कोच, फिज़ियो और ट्रेनर हैं."

"2009 में हमारे पास सिर्फ़ एक फिज़ियो था, जो हमारे साथ ट्रैवल भी नहीं करता था. 2012 लंदन ओलंपिक में तो पूरे भारतीय दल के लिए सिर्फ़ एक ही फिज़ियो था."

भारतीय बैडमिंटन का गोल्डन फ़ेज़ image Getty Images महिला डबल्स में ज्वाला गुट्टा और अश्विनी पोनप्पा ने 2011 की लंदन वर्ल्ड चैंपियनशिप में ब्रॉन्ज़ मेडल जीता.

भारतीय बैडमिंटन के गोल्डन फ़ेज़ में सबसे पहले साइना नेहवाल ने अपनी तकनीक, मानसिक मजबूती और बेबाक़ अंदाज़ से अंतरराष्ट्रीय बैडमिंटन में भारत की मौजूदगी का अहसास कराया.

2012 के लंदन ओलंपिक में उन्होंने ब्रॉन्ज़ मेडल जीतकर भारत के लिए ओलंपिक में बैडमिंटन का पहला पदक हासिल किया.

2015 में साइना ने एक और मुकाम छूते हुए वर्ल्ड रैंकिंग में नंबर 1 स्थान हासिल किया और भारतीय बैडमिंटन का चेहरा बनकर उभरीं.

महिला डबल्स में ज्वाला गुट्टा और अश्विनी पोनप्पा ने 2011 की लंदन वर्ल्ड चैंपियनशिप में ब्रॉन्ज़ मेडल जीतकर देश को ऐतिहासिक कामयाबी दिलाई.

2017 में भारतीय बैडमिंटन को एक नई रफ़्तार मिली, जब श्रीकांत ने एक ही साल में चार सुपर सीरीज़ ख़िताब अपने नाम किए.

इसके अगले ही साल उन्होंने साइना की राह पर चलते हुए पुरुष सिंगल्स में वर्ल्ड रैंकिंग में टॉप जगह हासिल की.

image Getty Images ओलंपिक में दो पदक जीतने वाली पहली बैडमिंटन खिलाड़ी पीवी सिंधु.

उसी दौरान एक और कामयाब खिलाड़ी के तौर पर पीवी सिंधु सामने आईं.

उन्होंने 2016 रियो ओलंपिक में सिल्वर और 2021 टोक्यो ओलंपिक में ब्रॉन्ज़ जीतकर इतिहास रच दिया.

वो भारत की पहली दो बार की ओलंपिक पदक विजेता बैडमिंटन खिलाड़ी बनीं.

इस बीच, 2019 में उन्होंने बेसल में वर्ल्ड चैंपियनशिप का ख़िताब जीतकर दुनिया को हैरान कर दिया.

15 मई 2022 को भारत ने थॉमस कप जीतकर बैडमिंटन में लंबे समय से कायम अंतरराष्ट्रीय वर्चस्व को चुनौती दी.

एक साल बाद, अक्तूबर 2023 में, सात्विक-चिराग की जोड़ी ने वर्ल्ड डबल्स रैंकिंग में शीर्ष स्थान हासिल कर नई ऊंचाई हासिल की.

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'रैंकिंग नहीं जीत के लिए खेलना चाहिए' image Getty Images जापान की टोमोका मियाज़ाकी सिर्फ़ 18 साल की हैं, फिर भी वर्ल्ड रैंकिंग में सातवें नंबर पर हैं.

मौजूदा दौर में दुनिया की रैंकिंग पर एक नज़र डालें, तो आंकड़े प्रभावित करते हैं.

पुरुष सिंगल्स की टॉप-75 रैंकिंग में भारत के दर्जनभर खिलाड़ी शामिल हैं. इनमें सिर्फ़ श्रीकांत और प्रणय ही 32 साल के हैं, बाकी सभी 25 वर्ष या उससे कम उम्र के हैं.

पी. कश्यप कहते हैं, "नए खिलाड़ियों में मुझे लगता है कि प्रियांशु राजावत, किरण जॉर्ज, थरुण मण्णेपल्ली, आयुष शेट्टी और मनराज सिंह आने वाले सालों में अच्छा कर सकते हैं."

महिला सिंगल्स में भारत की 17 खिलाड़ी टॉप-100 में हैं. इनमें से पांच खिलाड़ी टॉप-50 में शामिल हैं, वो हैं- मालविका बंसोड़, अनुपमा उपाध्याय, रक्षिता श्री, आकर्षी कश्यप और पीवी सिंधु.

बैडमिंटन कोच विमल कुमार इस पर सवाल करते हुए कहते हैं, "हमारी लड़कियों को रैंकिंग के लिए नहीं, जीत के इरादे से खेलना चाहिए. जापान की टोमोका मियाज़ाकी को देखिए. वो सिर्फ़ 18 साल की हैं और फिर भी वर्ल्ड रैंकिंग में सातवें नंबर पर हैं."

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एक ऐसा क्षेत्र जहां बैडमिंटन एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया (बीएआई) भारतीय क्रिकेट बोर्ड से प्रेरणा ले सकता है, वो है अपनी ख़ुद की एक पेशेवर लीग.

बीएआई को अपनी लीग दोबारा शुरू करनी चाहिए, जिसे पेशेवर लोगों को चलाना चाहिए और कॉर्पोरेट्स से उसे फ़ंड मिलना चाहिए.

विमल कुमार सुझाव के तौर पर बताते हैं, "अगर हम लीग को फिर से शुरू कर सकें, तो यह भारतीय खिलाड़ियों के लिए बहुत मददगार होगा. जब हमारे युवा खिलाड़ी अंतरराष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ियों और कोचों के साथ ट्रेनिंग करते हैं और बातचीत करते हैं, तो उन्हें बहुत कुछ सीखने को मिलता है. पहले की लीग से सात्विक और चिराग को भी जबरदस्त फ़ायदा हुआ था."

"इस लीग को टिकाऊ बनाने के लिए इसकी ज़िम्मेदारी कॉर्पोरेट्स और प्रोफ़ेशनल टीमों को दी जानी चाहिए. कई विदेशी खिलाड़ी हमारे यहां लीग में खेलने को तैयार रहते हैं. यहां तक कि बैडमिंटन वर्ल्ड फ़ेडरेशन ने भी हमें साल में दो से तीन हफ्तों की तय समय-सीमा दे रखी है."

जीत की आदत image Getty Images ऑल इंग्लैंड ओपन बैडमिंटन चैंपियनशिप 2023 में शॉट लगाती ट्रीसा और गायत्री की जोड़ी.

हाल के समय में भारतीय खिलाड़ियों के हाथ से कई ख़िताब सिर्फ़ इसलिए फिसल गए, क्योंकि वो क़रीबी मुक़ाबलों को अपने नाम नहीं कर पाए.

विमल कुमार मानते हैं, "आख़िरकार ख़िताब जीतना ही सबसे अहम होता है. हमारे कई खिलाड़ी सिर्फ़ रैंकिंग के पीछे भागते हैं. खिलाड़ियों को 18, 19 या 20 साल की उम्र में ही बड़े उलटफेर करने शुरू कर देने चाहिए."

"सबसे बड़ा लक्ष्य यह होना चाहिए कि अच्छे खिलाड़ियों को हराकर वर्ल्ड टूर सुपर 1000, 750 या 500 जैसे बड़े टूर्नामेंट जीते जाएं."

बदलाव परेशान कर सकता है, लेकिन यही बदलाव सब कुछ बदल भी सकता है.

पी. कश्यप का मानना है कि लक्ष्य सेन और सात्विक-चिराग की जोड़ी 2028 लॉस एंजेलिस ओलंपिक में पदक जीत सकते हैं.

कौन जानता है? शायद ट्रीसा और गायत्री की जोड़ी या कोई अनदेखा नाम पोडियम तक पहुंच जाए.

बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़ रूम की ओर से प्रकाशित

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