अपने भारत दौरे से ठीक पहले ब्रिटेन के प्रधानमंत्री किएर स्टार्मर ने विमान में पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि ब्रिटेन भारत के लिए वीज़ा नियमों में ढील नहीं देगा.
भारत के साथ हाल ही में हुए ट्रेड एग्रीमेंट (व्यापार समझौते) पर चर्चा करने और इसके तहत कई तरह के एलान करने के लिए स्टार्मर बुधवार को अपने दो दिनों के भारत दौरे पर मुंबई पहुंचे हैं. उनका प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी मुलाक़ात का कार्यक्रम है.
स्टार्मर के साथ एक लंबा चौड़ा प्रतिनिधिमंडल भी भारत पहुंचा है जिसमें उद्योगपतियों और कई नेताओं के साथ-साथ कई यूनिवर्सिटीज़ के वाइस चांसलर भी हैं.
उनकी इस यात्रा का उद्देश्य ब्रिटेन में निवेश को बढ़ावा देना और वहां की सुस्त पड़ी अर्थव्यवस्था में जान फूंकना है.
उन्होंने ये ज़रूर कहा कि आपसी व्यापार और सांस्कृतिक संबंधों को बेहतर बनाने के दोनों देशों के पास अच्छे मौक़े हैं
लेकिन ये भी कह दिया कि, अभी भारतीय कर्मचारियों या छात्रों के लिए 'नए वीज़ा रास्ते खोलने की उनकी कोई योजना नहीं है.'
उन्होंने कहा, "मुद्दा वीज़ा का है ही नहीं. यह दोनों देशों के बीच व्यापार, निवेश, नौकरियों और ब्रिटेन की समृद्धि से संबंधित है."
भारत और ब्रिटेन के बीच कई सालों की बातचीत के बाद इसी साल जुलाई में यह व्यापार समझौता हुआ था.
इस समझौते के तहत ब्रिटिश कारों और व्हिस्की को भारत में सस्ता निर्यात किया जा सकेगा, और भारतीय वस्त्रों व आभूषणों को ब्रिटेन में सस्ता निर्यात किया जा सकेगा जिससे दोनों देशों का व्यापार कई अरब पाउंड बढ़ जाएगा.
इस समझौते में ब्रिटेन में शॉर्ट टर्म वीज़ा पर काम करने वाले भारतीय कर्मचारियों के लिए सामाजिक सुरक्षा के भुगतान से तीन साल की छूट तो शामिल है लेकिन स्टार्मर ने ये भी साफ़ किया है कि ब्रिटेन की इमिग्रेशन पॉलिसी में कोई बदलाव नहीं किया गया है.
ब्रिटेन की लेबर पार्टी की सरकार वहां के इमिग्रेशन नियमों में लगातार सख़्ती ला रही है और पिछले हफ़्ते पार्टी सम्मेलन में वहां सैटलमेंट स्टेटस पर भी कड़ी पॉलिसी की घोषणा की थी.
'मायूसी वाली ख़बर'हाल ही में अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एच-1बी वीज़ा नियमों को बेहद सख़्त कर दिया है जिसका सबसे ज़्यादा असर भारत पर पड़ा है. क्योंकि एच-1बी वीज़ा धारकों में सबसे ज़्यादा भारतीय वर्कर होते हैं. जिसके बाद उम्मीद की जा रही थी कि अब ब्रिटेन टेक उद्यमियों को अपने यहां आकर्षित करने की कोशिश करेगा जो भारतीय वर्कर्स के लिए अच्छी ख़बर हो सकती है.
ब्रिटेन में भी कई कंपनियों मांग कर रही थीं कि अच्छे टैलेंट को ब्रिटेन में आकर्षित करने के लिए इमिग्रेशन नियमों में ढील देनी चाहिए. लेकिन स्टार्मर का भारत के संदर्भ में ये ताज़ा बयान क्या भारत, भारतीय छात्रों और भारतीय वर्कर्स के लिए मायूसी वाली ख़बर है?
वरिष्ठ विश्लेषक और अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार रॉबिंदर सिंह सचदेव कहते हैं, "ये थोड़ी मायूसी वाली ख़बर तो है. ब्रिटेन वीज़ा नियमों को लगातार टफ़ करता जा रहा है. और आगे इसमें और भी सख़्ती की जाएगी. उनकी ये पॉलिसी भारत ही नहीं सभी के लिए है. लेकिन हां भारतीय उम्मीद कर रहे थे कि एच1-बी नियमों के सख़्त होने के बाद शायद ब्रिटेन की तरफ़ से राहत वाली ख़बर आए. मगर वैसा हुआ नहीं और आगे भी ऐसा नहीं होगा क्योंकि ब्रिटेन के वीज़ा नियमों को और भी टफ़ किया जाएगा."
रॉबिंदर सिंह सचदेव के मुताबिक़ ब्रिटेन की घरेलू नीति के लिए भी ये ज़रूरी है क्योंकि वहां की जनता की यही मांग है. इमिग्रेशन वहां बड़ा मुद्दा रहा है.
हालांकि अंतरराष्ट्रीय मामलों की एक और जानकार डॉक्टर मोनिका वर्मा की राय इससे अलग है.
वो कहती हैं, "स्टार्मर यहां ट्रेड एग्रीमेंट पर बात करने आ रहे हैं. उसमें वीज़ा का कोई योगदान नहीं है. वीज़ा वाली बात इसमें शामिल ही नहीं है. हो सकता है आगे के चरणों में वीज़ा पर भी बात हो. उसमें हमें छूट मिले. तो ये ज़्यादा निराश होने वाली बात नहीं है."
मोनिका वर्मा के मुताबिक़ इमिग्रेशन का मुद्दा ब्रिटेन की इंटरनल सेक्योरिटी से जुड़ा है. वहां सेक्योरिटी का मसला है.
वो कहती हैं, "स्टार्मर ब्रिटेन के पीएम हैं तो वहां के लोग उनकी पहली प्राथमिकता है. उनके हितों की रक्षा करना उनका मैंडेट है. इमिग्रेशन पॉलिसी को कड़ा करने की वहां लगातार मांग होती रही है."
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भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किएर स्टार्मर की यात्रा से एक दिन पहले एक्स पररूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को जन्मदिन की शुभकामनाएं दी थीं.
इस पर प्रतिक्रिया देते हुए किएर स्टार्मर ने कहा, "रिकॉर्ड के लिए बता दूं कि मैंने पुतिन को जन्मदिन की बधाई नहीं दी है और न ही देने वाला हूं. मुझे नहीं लगता कि यह किसी को चौंकाएगा."
जब उनसे पूछा गया कि क्या वे नरेंद्र मोदी से भारत के रूसी तेल ख़रीदने का मुद्दा उठाएंगे तो उन्होंने कहा कि ब्रिटेन का ध्यान रूस के 'शैडो फ्लीट' नाम के तेल टैंकरों के नेटवर्क पर है.
स्टार्मर ने कहा कि ब्रिटेन लगातार रूस की इस शैडो फ़्लीट का मुद्दा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उठाता रहा है.
यूक्रेन वॉर के मद्देनज़र रूसी तेल की बिक्री पर कई तरह के प्रतिबंध के बाद रूसी जहाजों का ये नेटवर्क रूस से तेल की ढुलाई करके अंतरराष्ट्रीय निगरानी से बचकर उन्हें बेचता है. इन्हीं जहाजों के नेटवर्क का 'शैडो फ़्लीट' कहा जाता है.
अमेरिका ने भारत के रूसी तेल ख़रीदने को हवाला देकर भारत पर कुल 50 प्रतिशत टैरिफ़ लगा दिए हैं. ब्रिटेन अमेरिका का क़रीबी पार्टनर है. ऐसे में क्या अमेरिका उस पर भी ये दबाव डालेगा कि वो रूसी तेल को लेकर भारत के साथ वैसा ही कड़ा रवैया अपनाए जैसा उसने अपनाया था.
रॉबिंदर सिंह सचदेव कहते हैं, "ऐसा बिलकुल मुमकिन है. हो सकता है अमेरिका ने ब्रिटेन से ऐसा बोला है या आगे कहे. अगर यूक्रेन वॉर वाला मुद्दा जल्द नहीं सुलझता तो अमेरिका ब्रिटेन से और यूरोपीय संघ से भारत ही नहीं उन सभी देशों के साथ सख़्ती बरतने को कह सकता है जो रूसी ऑइल ख़रीदते हैं. अब ये उन देशों पर निर्भर करता है कि वो अमेरिका की बात पर कितना अमल करते हैं."
वहीं मोनिका वर्मा के मुताबिक़ रूसी तेल कोई मसला नहीं है क्योंकि अमेरिका ट्रेड डील में भारत से कई मुद्दों पर छूट चाहता है और ऐसे में वो रूसी तेल का हवाला देकर टैरिफ़ लगा रहा है ताकि भारत से वो ये छूट हासिल कर सके.
वो कहती हैं, "भारत और ब्रिटेन की ट्रेड डील हो चुकी है. अमेरिका के ब्रिटेन पर दबाव डालने का ज़्यादा असर नहीं होगा. बाइडन प्रशासन को तो भारत के रूस से तेल ख़रीदने को लेकर कोई आपत्ति नहीं थी. वैसे भी स्टार्मर और ट्रंप की पर्सनैलिटी में बड़ा अंतर है. वो जानते हैं कि भारत से अच्छे संबंध रखना दोनों देशों के लिए ज़रूरी है."
मोनिका वर्मा के मुताबिक़ चीन समेत कई और देश रूसी तेल ख़रीदते हैं लेकिन ट्रंप ने उन पर तो वैसा कड़ा प्रतिबंध नहीं लगाया जैसा भारत पर लगाया. इसकी वजह ही यही है कि उन्हें भारत से व्यापार छूटें चाहिए.
'ब्रिटेन से अच्छे संबंध अमेरिका से बुरे संबंधों की भरपाई नहीं'विशेषज्ञ मानते हैं कि ब्रिटेन के साथ भारत का ये व्यापार समझौता दोनों देशों के लिए बेहतर है. दोनों ही देशों को इससे फ़ायदा होगा.
वहीं भारत की अमेरिका के साथ ट्रेड डील पर बातचीत अभी भी जारी है. लेकिन अगर अमेरिका का भारत के प्रति मौजूदा कड़ा रवैया जारी रहता है तो क्या ब्रिटेन के साथ अच्छे व्यापार संबंध कुछ हद तक इस नुक़सान की भरपाई कर सकेंगे?
मोनिका वर्मा कहती हैं, "अमेरिका दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और ब्रिटेन पांचवी सबसे बड़ी इकॉनमी है. ऐसे में ब्रिटेन से बढ़िया व्यापार संबंध भी अमेरिका से ख़राब संबंधों की भरपाई नहीं कर पाएंगे. लेकिन ब्रिटेन के साथ हुई डील भारत के लिए बहुत अच्छी है. यूके भारत के लिए रेडी मार्केट है. पिछले पांच सालों में हमारा इलेक्ट्रॉनिक एक्सपोर्ट वहां बहुत बढ़ा है. टेक्सटाइल के लिए हम बड़े पैमाने पर रॉ मटेरियल वहां सप्लाई करते हैं."
रॉबिंदर सिंह सचदेव के मुताबिक़ अमेरिका और ब्रिटेन की कोई तुलना ही नहीं.
वो कहते हैं, "अमेरिका की इकॉनमी बहुत बड़ी है. भारत पर अमेरिका ने जो भारी भरकम टैरिफ़ लगाए हैं उससे भारत को अरबों डॉलर के व्यापार का नुक़सान होगा और लाखों नौकरियां भी जा सकती हैं. अगर ये जारी रहते हैं तो इसका असर भारत की इकॉनमी पर ज़रूर आएगा."
क्या है भारत और ब्रिटेन का व्यापार समझौताइसी साल जुलाई में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ब्रिटेन दौरे के वक़्त भारत और ब्रिटेन के बीच बीते तीन साल तक रुक-रुक कर चले एफ़टीए, यानी मुक्त व्यापार समझौते पर मुहर लग गई. 2020 में ब्रेक्सिट के बाद ब्रिटेन का किसी दूसरे देश के साथ यह सबसे बड़ा व्यापारिक समझौता है.
ब्रिटिश सरकार का कहना है कि इस समझौते से ब्रिटिश अर्थव्यवस्था में हर साल 4.8 अरब पाउंड (6.5 अरब डॉलर) प्रति वर्ष का योगदान होगा.
हालांकि ब्रिटेन भारत को अपने कुल निर्यात का 1.9 प्रतिशत निर्यात करता है और कुल आयात का 1.8 प्रतिशत आयात करता है.
लेकिन समझौता लागू होने के बाद इसमें बढ़ोतरी की उम्मीद की जा रही है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2030 तक निर्यात के 1 ट्रिलियन डॉलर तक बढ़ने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखा है और इस मक़सद में ब्रिटेन सबसे उच्च प्राथमिकता वाला व्यापारिक साझेदार है.
ब्रिटेन से निर्यात किए जाने वाले सामानों पर औसत टैरिफ 15% से घटकर 3% हो जाएगा, इससे ब्रिटिश कंपनियों के लिए भारत में सामान बेचना आसान हो जाएगा.
भारत ने ब्रिटेन से आयात होने वाली व्हिस्की पर टैरिफ़ को आधा यानी 150% से घटाकर 75% कर दिया है.
इससे भारतीय बाज़ार में पहुंच के मामले में ब्रिटेन को अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धियों पर तत्काल बढ़त मिलेगी. यह शुल्क 2035 तक और घटाकर 40% तक किए जाने का प्रावधान है.
जबकि भारत में ब्रिटेन की कारें, एयरोस्पेस, इलेक्ट्रिकल्स, चिकित्सा उपकरण, व्हिस्की और मांस, बिस्कुट, चॉकलेट जैसे खाद्य पदार्थ सस्ते हो जाएंगे, वहीं ब्रिटेन में भारतीय वस्त्र और आभूषण भी सस्ते होंगे.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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