जून 2025 में वाशिंगटन डीसी में आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के लाइव प्रसारण के दौरान कुछ अद्भुत तस्वीरें दिखाई गईं.
इस प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करने वालों में रुबिन वेधशाला के निदेशक ज़ेल्को इवेज़िक भी शामिल थे. उन्होंने कहा कि रुबिन कंस्ट्रक्शन की पूरी टीम इन तस्वीरों में छिपा डेटा हासिल करके बहुत उत्साहित है. उनका कहना था कि यह बीस सालों की मेहनत का नतीजा है.
वेरा रुबिन ऑब्ज़र्वेटरी या वेधशाला दक्षिण अमेरिकी देश चिली में स्थित है. चिली दुनिया में बेहतरीन खगोल विज्ञान के शोध के लिए जाना जाता है.
प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान हज़ारों प्रकाशवर्ष दूर की सैकड़ों आकाशगंगाओं की चमचमाती रंगीन तस्वीरें पेश की गईं.
अब चिली की वेरा रुबिन वेधशाला एक सर्वेक्षण शुरू करने जा रही है, जो दस साल तक चलेगा और अंतरिक्ष के कई राज़ खोलेगी.
इस सर्वेक्षण में रात के आसमान की पल-पल की हाई डेफ़िनिशन, स्पष्ट और विस्तृत तस्वीरें खींची जाएंगी.
प्रेस वार्ता में जारी की गई तस्वीरें, उसकी पहली झलक थीं.
इस हफ़्ते 'दुनिया जहान' में हम यही जानने की कोशिश करेंगे कि चिली के नए टेलीस्कोप से ब्रह्मांड के बारे में क्या पता चलेगा.
ब्रह्मांड को समझने की जद्दोजहदएडिनबरा यूनिवर्सिटी में एस्ट्रोफ़िज़िक्स की प्रोफ़ेसर कैथरीन हैमन्स कहती हैं कि अगर हम पुरानी सभ्यताओं को भी देखें तो पता चलता है कि इंसान को हमेशा से ब्रह्मांड को समझने में दिलचस्पी रही है.
उनके अनुसार, हमारे सौरमंडल में आठ बड़े ग्रह और पाँच छोटे (ड्वार्फ) ग्रह हैं. इनके अलावा सैकड़ों चंद्रमा और हज़ारों धूमकेतू मौजूद हैं. इस पूरे तंत्र के केंद्र में सूर्य है, जो एक तारा है. लेकिन हमारी मिल्कीवे आकाशगंगा में ऐसे सैकड़ों अरब तारे हैं.
ब्रह्मांड को समझने के लिए टेलीस्कोप का सबसे पहला इस्तेमाल गैलीलियो ने किया था. प्रोफ़ेसर हैमन्स बताती हैं कि 1609 में गैलीलियो ने एक टेलीस्कोप के ज़रिए बृहस्पति ग्रह और उसके चारों ओर परिक्रमा करने वाले चंद्रमाओं को देखा.
उस समय यह धारणा थी कि पृथ्वी ही ब्रह्मांड का केंद्र है. लेकिन गैलीलियो के अवलोकनों से यह विचार बदलने लगा. दरअसल, अन्य ग्रहों की तरह पृथ्वी भी सूर्य की परिक्रमा करती है.
1920 के दशक में कई क्रांतिकारी खोजें सामने आईं, जिनसे यह भी स्पष्ट हुआ कि मिल्कीवे के अलावा भी अनेक आकाशगंगाएं हैं.
इन्हीं खोजों के आधार पर 'बिग बैंग थ्योरी' सामने आई, जिसमें माना गया कि ब्रह्मांड की शुरुआत एक अत्यंत छोटे, गर्म और घने बिंदु से हुई थी. क़रीब 13.8 अरब साल पहले यह बिंदु एक विशाल विस्फोट के साथ फैला, और उसके बाद ब्रह्मांड ने वह रूप लिया जिसे हम आज देख पा रहे हैं.
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कैथरीन हैमन्स ने बताया कि खगोलशास्त्री वेरा रुबिन और केन फ़ोर्ड के एक अध्ययन से ब्रह्मांड के बारे में बेहद अहम जानकारी सामने आई.
हैमन्स बताती हैं, "1970 के दशक में टेलीस्कोप आज जितने आधुनिक और शक्तिशाली नहीं थे, लेकिन उनके ज़रिए इन दोनों अमेरिकी खगोलशास्त्रियों ने हमारे क़रीब की एंड्रोमेडा आकाशगंगा का अध्ययन किया. वेरा रुबिन ने पाया कि एंड्रोमेडा आकाशगंगा जितनी अपेक्षित थी, उससे कहीं ज़्यादा तेज़ी से घूम रही थी."
वेरा रुबिन के सामने सवाल था कि इतनी तेज़ी से घूमती इस आकाशगंगा में एक खरब से अधिक तारे मौजूद हैं, पर उन्हें अपनी जगह पर टिकाए रखने के लिए कितनी गुरुत्वाकर्षण शक्ति की ज़रूरत पड़ती होगी?
कैथरीन हैमन्स बताती हैं कि इस गुत्थी को सुलझाने के लिए वेरा रुबिन ने अन्य आकाशगंगाओं का भी अध्ययन किया और वहाँ भी वही पैटर्न सामने आया. तब यह समझ में आया कि इन आकाशगंगाओं को स्थिर रखने वाली कोई रहस्यमयी शक्ति है, जिसे बाद में 'डार्क मैटर' नाम दिया गया.
कैथरीन हैमन्स कहती हैं, "ब्रह्मांड में एक अदृश्य शक्ति है, जो इन तेज़ी से घूमती हुई आकाशगंगाओं के तारों को अपनी गुरुत्वाकर्षण शक्ति से थामे हुए है. इस क्षेत्र में वेरा रुबिन का योगदान बेहद अहम रहा. उन्होंने ब्रह्मांड में डार्क मैटर की मौजूदगी का पहला सबूत पेश किया. साथ ही उन्होंने विज्ञान जगत में महिलाओं को लेकर बनी धारणाओं को भी तोड़ा और साबित किया कि वेधशालाओं में ब्रह्मांड के अध्ययन में महिलाओं की भागीदारी भी ज़रूरी है."
जिस वेधशाला से ब्रह्मांड की अद्भुत तस्वीरें ली गई हैं, उसका नाम वेरा रुबिन के सम्मान में रखा गया है.
लेकिन वेरा रुबिन वेधशाला अन्य वेधशालाओं से अलग कैसे है?
वेरा रुबिन वेधशाला क्यों है ख़ास?वाशिंगटन यूनिवर्सिटी में खगोल विज्ञान के प्रोफ़ेसर और वेरा रुबिन वेधशाला के निदेशक ज़ेल्को इवेज़िक कहते हैं, "रुबिन वेधशाला खगोल विज्ञान की अब तक की सबसे महानतम मशीन है, जो अंतरिक्ष को तेज़ रफ़्तार से स्कैन करती है."
उन्होंने बताया कि इस वेधशाला के निर्माण में अमेरिकी विज्ञान संस्थाओं से आर्थिक सहायता मिली है. चिली में इसके अलावा कई अंतरराष्ट्रीय वेधशालाएं भी स्थित हैं.
ज़ेल्को इवेज़िक बताते हैं कि रुबिन वेधशाला को चिली में इसलिए लगाया गया क्योंकि अंतरिक्ष निरीक्षण के लिए यह बेहद अनुकूल स्थान है.
उन्होंने कहा, "इसकी वजह यह है कि यहां का आसमान बेहद साफ़ है और मौसम सूखा रहता है. यह वेधशाला दस हज़ार फ़ीट ऊंचे पहाड़ पर स्थित है, जहां से अवलोकन बेहद सटीक ढंग से किया जा सकता है. इस लिहाज़ से चिली, खगोल विज्ञान शोध के लिए दुनिया की सबसे बेहतरीन जगहों में से एक है."
यह वेधशाला अक्तूबर 2025 से दक्षिणी गोलार्ध के आसमान का सर्वेक्षण शुरू करेगी. अगले दस वर्षों तक हर कुछ रातों में यह आसमान की स्पष्ट और बारीक स्कैनिंग करती रहेगी.
इन तस्वीरों के टाइमलैप्स के ज़रिए यह समझा जा सकेगा कि आसमान में कौन-सी चीज़ें ज़्यादा चमकदार हो रही हैं या धीरे-धीरे धुंधली पड़ रही हैं. इससे यह जानने में मदद मिलेगी कि ब्रह्मांड में किस तरह के बदलाव आ रहे हैं.
ये सभी तस्वीरें सीमोन्यी सर्वे टेलीस्कोप से ली जाएंगी. लगभग 28 फ़ीट लंबा यह टेलीस्कोप 40 अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं की मदद से तैयार किया गया है.
दुनिया का सबसे बड़ा 'डिजिटल कैमरा'
ज़ेल्को इवेज़िक के अनुसार, इस टेलीस्कोप में अब तक का दुनिया का सबसे बड़ा डिजिटल कैमरा लगाया गया है, जिसकी क्षमता 3,200 मेगापिक्सेल है.
यह कैमरा कितना शक्तिशाली है, इसका अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि स्मार्टफ़ोन के सबसे बेहतर कैमरे भी अधिकतम 200 मेगापिक्सेल की तस्वीरें ही खींच सकते हैं.
एक टेराबाइट स्टोरेज में स्टैंडर्ड डेफ़िनिशन की क़रीब ढाई लाख तस्वीरें सहेजी जा सकती हैं. लेकिन इस टेलीस्कोप के डिजिटल कैमरे से हर रात इतनी उच्च गुणवत्ता की तस्वीरें ली जाएंगी कि उन्हें सहेजने के लिए लगभग 20 टेराबाइट स्टोरेज की ज़रूरत पड़ेगी.
ज़ेल्को इवेज़िक बताते हैं कि इस टेलीस्कोप से ली गई केवल एक तस्वीर को देखने के लिए 400 हाई डेफ़िनिशन टेलीविज़न स्क्रीन की ज़रूरत होगी. इस कैमरे का आकार किसी बड़ी कार जितना है.
यह विशाल डेटा चिली यूनिवर्सिटी के फ़ाइबर ऑप्टिक नेटवर्क के ज़रिए अमेरिका भेजा जाएगा. वहां से इसे फ़्रांस और यूनाइटेड किंगडम भेजा जाएगा, जहां इसका विश्लेषण किया जाएगा.
लेकिन सवाल यह है कि जब पहले से ही कई शक्तिशाली टेलीस्कोप मौजूद हैं, तो फिर इस नए टेलीस्कोप की ज़रूरत क्यों पड़ी?
ज़ेल्को इवेज़िक इस सवाल का जवाब एक आसान उदाहरण से देते हैं.
इवेज़िक बताते हैं, "मिसाल के तौर पर वाहनों को ही लीजिए. स्पोर्ट्स कार बहुत तेज़ चलती है, लेकिन वह ट्रैक्टर की तरह खेत नहीं जोत सकती. उसी तरह ट्रैक्टर में 50 बच्चों को स्कूल नहीं भेजा जा सकता. उसके लिए स्कूल बस की ज़रूरत होती है. यानी हर काम के लिए एक ख़ास मशीन की ज़रूरत होती है."
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डॉक्टर बुर्चिन मूटलू पाकडिल अमेरिका के न्यू हैम्पशायर स्थित डार्टमथ कॉलेज में भौतिक विज्ञान की असिस्टेंट प्रोफ़ेसर हैं और टेलीस्कोप के ज़रिए ब्रह्मांड व आकाशगंगाओं का निरीक्षण करती हैं.
वह कहती हैं कि एक अहम सवाल यह है कि डार्क मैटर दरअसल है क्या?
"इसके बारे में हमारी जानकारी बेहद सीमित है. हमें इस पर विश्वास है कि डार्क मैटर मौजूद है, क्योंकि सामान्य मैटर पर इसका प्रभाव देखा जा सकता है. लेकिन डार्क मैटर, सामान्य मैटर को किस तरह प्रभावित करता है और ब्रह्मांड पर इसका क्या असर पड़ता है. यह जानना अभी बाकी है."
1970 के दशक में वेरा रुबिन के शोध से डार्क मैटर की मौजूदगी का पता चला. इसके बाद 1990 के दशक में खगोलविदों की दो अलग-अलग टीमों ने ब्रह्मांड में डार्क एनर्जी के अस्तित्व का भी पता लगाया.
डॉक्टर मूटलू पाकडिल कहती हैं कि डार्क एनर्जी, डार्क मैटर से अलग है. डार्क एनर्जी एक गुरुत्वाकर्षण-विरोधी ताक़त है, जो वस्तुओं को एक-दूसरे की ओर खींचने के बजाय उनसे दूर करती है या उनका विस्तार करती है.
वैज्ञानिकों ने यह अनुमान लगाया है कि ब्रह्मांड का केवल 5 प्रतिशत हिस्सा सामान्य मैटर से बना है, जिसे हम देख सकते हैं. जबकि 27 प्रतिशत हिस्सा डार्क मैटर और 68 प्रतिशत हिस्सा डार्क एनर्जी से बना है.
डॉक्टर मूटलू पाकडिल कहती हैं कि इससे साफ़ होता है कि ब्रह्मांड का एक बड़ा हिस्सा अभी भी हमारी समझ से बाहर है.
उनके अनुसार, "हम अंतरिक्ष में आकाशगंगाओं को देख सकते हैं, लेकिन डार्क मैटर और डार्क एनर्जी का सीधे निरीक्षण नहीं कर सकते. हम केवल उन आकाशगंगाओं में हो रहे बदलावों के आधार पर इसके बारे में कुछ जानने की कोशिश करते हैं. इतनी सीमित जानकारी के आधार पर किसी निष्कर्ष तक पहुंचना बेहद जटिल है."
रुबिन वेधशाला का टेलीस्कोप और उसमें लगा शक्तिशाली डिजिटल कैमरा इस गुत्थी को सुलझाने में बड़ी भूमिका निभा सकता है.
डार्क मैटर के रहस्यडॉक्टर बुर्चिन मूटलू पाकडिल बताती हैं कि ब्रह्मांड की अदृश्य चीज़ों को छुआ नहीं जा सकता. इसलिए डार्क मैटर, डार्क एनर्जी और अन्य अदृश्य तत्वों को समझने के लिए जिन प्रयोगों की ज़रूरत होती है, उनके लिए अत्यंत आधुनिक उपकरण और गहन वैज्ञानिक जानकारी चाहिए.
वह कहती हैं कि कुछ आकाशगंगाओं में डार्क मैटर का प्रभाव अधिक दिखता है, इसलिए उन आकाशगंगाओं की पहचान कर उनका विस्तार से निरीक्षण करना ज़रूरी है. और इसमें रुबिन वेधशाला अहम भूमिका निभा सकती है.
डॉक्टर पाकडिल कहती हैं, "इससे खगोल विज्ञान में क्रांतिकारी बदलाव आ सकता है. अभी हम केवल बड़ी और चमकदार आकाशगंगाओं को देख पाते हैं, जबकि छोटी और धुंधली आकाशगंगाएं संख्या में उनसे कहीं ज़्यादा हैं, जिनका अब तक निरीक्षण संभव नहीं हो पाया है."
"इनका अध्ययन हमें ब्रह्मांड की उत्पत्ति के बारे में बहुत कुछ समझा सकता है. यह काम रुबिन वेधशाला के ज़रिए संभव हो सकेगा. जैसे-जैसे ब्रह्मांड के रहस्यों से पर्दा उठेगा, उसी के साथ नई टेक्नोलॉजी विकसित होंगी जो हमारी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में भी उपयोगी साबित होंगी."
वैज्ञानिकों ने ऐसी ही नई टेक्नोलॉजी की मदद से एक और शक्तिशाली टेलीस्कोप विकसित करना शुरू कर दिया है.
इस टेलीस्कोप का नाम अमेरिकी खगोल वैज्ञानिक नैन्सी ग्रेस रोमन के नाम पर रखा गया है. नैन्सी रोमन ने हबल टेलीस्कोप के शुरुआती निर्माण में अहम भूमिका निभाई थी और 1960 के दशक में वह नासा की पहली प्रमुख महिला खगोल विज्ञानी बनी थीं.
नैन्सी रोमन टेलीस्कोप को अंतरिक्ष में तैनात किया जाएगा. डॉक्टर पाकडिल के अनुसार, यह टेलीस्कोप अन्य अंतरिक्ष टेलीस्कोपों के साथ मिलकर ब्रह्मांड में डार्क मैटर की गुत्थी सुलझाने में बेहद मददगार साबित हो सकता है.
चिली के नए टेलीस्कोप से ब्रह्मांड के बारे में क्या पता चलेगा?वेरा रुबिन वेधशाला के टेलीस्कोप से किए जाने वाले सर्वेक्षण के ज़रिए यह समझने में मदद मिलेगी कि ब्रह्मांड की रचना कैसे होती है और समय के साथ उसमें किस तरह के बदलाव आते हैं.
इस टेलीस्कोप की मदद से ब्रह्मांड के उस 95 प्रतिशत हिस्से के रहस्यों को समझने की दिशा में भी क़दम बढ़ेंगे, जो डार्क मैटर और डार्क एनर्जी से बना है. इसके ज़रिए कई नई और चौंकाने वाली जानकारियां सामने आ सकती हैं.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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