मणिपुर पिछले कुछ दिनों से फिर सुर्ख़ियों में है. वहाँ के आम लोगों की ज़िंदगी सामान्य हुई है या नहीं, इस पर सबकी नज़र है.
चार सितम्बर को केंद्र सरकार ने एक बयान जारी किया था. इसमें बताया गया कि मणिपुर की कुकी-ज़ो काउंसिल ने मणिपुर से नगालैंड जाने वाले नेशनल हाईवे-2 पर लोगों और ज़रूरी सामान की आवाजाही को मंजूरी दे दी है.
दूसरी ओर, इसके कुछ ही वक़्त बाद कुकी-ज़ो काउंसिल ने कहा कि केंद्र सरकार का दावा भ्रामक है. उन्होंनेइस हाईवे को कभी बंद ही नहीं किया था. हालाँकि, उनके बयान से यह भी लगता है कि यह हाईवे सबके लिए नहीं खुला है.
नेशनल हाईवे-2 को मणिपुर और नगालैंड के बीच की जीवन रेखा माना जाता है. मणिपुर में साल 2023 में हिंसा भड़कने के बाद यह हाईवे लगातार बंद रहा है.
तो अब ज़मीनी हालात क्या हैं?
क्या वाक़ई ये हाईवे खुल गया है?
क्या सभी लोग आसानी से आ जा पा रहे हैं?
यही सब देखने और जानने के लिए बीबीसी हिन्दी की टीम ने 11 सितंबर को मणिपुर की राजधानी इम्फाल से नेशनल हाईवे-2 पर नगालैंड की तरफ़ लंबा सफ़र किया.
'मैतेई को आगे जाने की इजाज़त नहीं'
हम इम्फाल से क़रीब बीस किलोमीटर दूर ही पहुँचे थे, जब कंगलातोंबी नाम की जगह पर एक चेक पॉइंट पर हमारी गाड़ी रोक दी गई. हमारे साथ सफ़र कर रहे एक मैतेई व्यक्ति को गाड़ी से उतरने के लिए कहा गया.
चेक-पॉइंट पर मौजूद सुरक्षाकर्मियों ने कहा कि किसी भी मैतेई व्यक्ति को यहाँ से आगे जाने की इजाज़त नहीं है. आगे का इलाक़ा, कुकी बहुल है.
जिस मैतेई व्यक्ति को यहाँ रोका गया, वे इम्फाल के स्थानीय पत्रकार हैं. हमारी मदद के लिए साथ जा रहे थे.
मगर हाईवे के हालात समझने के लिए हमें अभी और आगे जाना ज़रूरी था. हमें उनकी हिफ़ाज़त की फ़िक्र थी, इसलिए मजबूरी में उन्हें यहीं अलविदा कहना पड़ा.
दूसरी ओर, स्थानीय लोगों में रोष है कि वे अब भी इस हाईवे का इस्तेमाल नहीं कर पा रहे हैं. वे लगातार इसके ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं.
इम्फाल से कुछ ही दूर पर हमें सेकमाई नाम की जगह में मैतेई महिलाएँ सड़क के किनारे प्रदर्शन करती दिखीं. वे इस हाईवे पर सबके लिए खुली आवाजाही न होने का विरोध कर रही थीं.
इन महिलाओं का नेतृत्व कर रहीं थोकचोम सुजाता देवी से हमने बात की.
उनके मुताबिक़, "बोला था फ़्री मूवमेंट हो जायेगा फिर भी मैतेई तो (इस हाईवे पर) जा नहीं सकता है. उसी की माँग है.... क्योंकि केंद्र सरकार ने पहले भी बोल दिया था.''
''अमित शाह जी ने आठ मार्च को कहा था कि नेशनल हाईवे पर फ़्री मूवमेंट हो जाएगा. ये नेशनल हाईवे हमारे लिए सबसे ज़्यादा ज़रूरी है. इसलिए इस पर अनिवार्य रूप से खुली आवाजाही होनी चाहिए."
हमने थोकचोम सुजाता देवी से समझना चाहा कि हाईवे पर खुली आवाजाही न होने की वजह से लोगों को क्या-क्या दिक़्क़तें आ रही हैं?
थोकचोम सुजाता देवी ने बताया, "ये हाईवे हमारा जीने का रास्ता है. अगर यही बंद कर दिया जायेगा तो लोग कैसे रहेंगे? हम लोग काम कहाँ करेंगे?''
''हम अगर असम जाना चाहें तो नहीं जा पा रहे हैं. ग़रीब लोगों को अगर इलाज कराना हो तो इसी रास्ते से बस पकड़ कर जाते थे. अगर हाईवे ही बंद कर दिया जाएगा तो कैसे जियेंगे हम लोग?"
कुकी बहुल इलाक़ों के हालातहम कुछ आगे बढ़े तो देखा कि कई जगह हाईवे की हालत बहुत अच्छी नहीं थी. कई जगह हाईवे को चौड़ा करने का काम भी चल रहा था. रह-रह कर हमें हाईवे पर सेना की मौजूदगी भी दिखती रही.
हालात को बेहतर समझने के लिए इस रास्ते में हमने कई लोगों से बात करने की कोशिश की. लेकिन ज़्यादातर लोग कैमरे के सामने बात करने के लिए तैयार नहीं हुए.
हालाँकि, बिना पहचान ज़ाहिर किये कई लोगों ने कहा कि इस हाईवे पर खुली आवाजाही न होने से लोगों को कई तरह की दिक़्क़तें आ रही हैं.
रोज़ाना इस्तेमाल की ज़रूरी चीज़ों के दाम बढ़ गए हैं क्योंकि अब ये लंबा रास्ता तय करके आ रहे हैं.
आख़िरकार इम्फाल से क़रीब 40 किलोमीटर दूर कुकी बहुल कांगपोकपी पहुँचकर हमें वहाँ के लोगों की परेशानियों के बारे में पता चला.
कांगपोकपी में रहने वाली एलिज़ाबेथ ने कहा, "हम यहाँ से सीधा इम्फाल नहीं जा पा रहे हैं. हम लोगों को दीमापुर के हवाई अड्डे का इस्तेमाल करना पड़ता है क्योंकि हम इम्फाल एयरपोर्ट नहीं जा सकते.''
''अगर किसी की तबीयत ख़राब हो जाए तो यहाँ दो अस्पताल ही हैं. लेकिन अगर किसी की हालत गंभीर हो जाए तो हमें दीमापुर या शिलांग जाना पड़ता है. इससे बहुत ज़्यादा तक़लीफ़ होती है. चूँकि हमें दूसरे राज्यों में जाना पड़ता है तो इससे बहुत ज़्यादा ख़र्चा होता है."
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अब कांगपोकपी से हम नेशनल हाईवे-2 पर और आगे बढ़े.
क़रीब 15 किलोमीटर आगे जाने पर हम सेनापति ज़िले में पहुँचे. यह नगा बहुल इलाक़ा है.
यहाँ नेशनल हाईवे-2 के बीचो-बीच एक नाकाबंदी की गई थी.
नाकाबंदी करने वालों ने कैमरा के सामने हमसे बात नहीं की. हालाँकि, उन्होंने इतना ज़रूर बताया कि यह नाकाबंदी यूनाइटेड नगा काउंसिल की तरफ़ से की गई है. यहाँ से किसी भी व्यवसायिक मालवाहक गाड़ी को गुज़रने की इजाज़त नहीं दी जा रही थी.
इन लोगों ने यह भी बताया कि अगर किसी प्राइवेट गाड़ी में निजी ज़रूरत से ज़्यादा कोई सामान मिल रहा है तो उसे भी यहाँ रोका जा रहा है. उसे लौटने के लिए कहा जा रहा है.
इस नाकाबंदी के पास ही हमारी मुलाक़ात अलिंगसन संगमा से हुई.
उन्हें यहाँ रोक दिया गया था. संगमा असम के नागाँव से नेशनल हाईवे-2 के ज़रिये इम्फाल जा रहे थे.
हमने उनसे पूछा कि उन्हें यहाँ क्यों रोका गया है. उन्होंने बताया कि वह अपनी गाड़ी में दो बोरी प्याज़ लेकर जा रहे थे. इसलिए उन्हें रोक दिया गया है.
हमने उन लोगों से भी बात की जिन्होंने अलिंगसन संगमा को रोका था.
उनका कहना था कि अलिंगसन जो प्याज़ ले जा रहे हैं, उसकी मात्रा निजी ज़रूरत की मात्रा से ज़्यादा है. उन्हें अगर आगे जाना है तो एक बोरी यहीं छोड़नी पड़ेगी.
नगा संगठन का व्यापार प्रतिबंधमणिपुर की एक प्रमुख नगा संस्था है, यूनाइटेड नगा काउंसिल. इसने आठ सितंबर की आधी रात से नगा बहुल इलाक़ों से गुज़रने वाली सभी सड़कों पर ट्रेड एम्बार्गो या व्यापार प्रतिबंध लागू कर दिया था.
यह विरोध केंद्र सरकार के एक प्रस्ताव के ख़िलाफ़ था.
इस प्रस्ताव में भारत-म्यांमार की 1,643 किलोमीटर लंबी सीमा पर बाड़ लगाने और 'फ़्री मूवमेंट रेजीम' (एफ़एमआर) ख़त्म करने की बात कही गई थी.
एफ़एमआर के तहत दोनों ओर रहने वाले लोग बिना दस्तावेज़ के एक-दूसरे के देश में सीमा से 16 किलोमीटर तक की यात्रा कर सकते हैं.
गृह मंत्री अमित शाह ने आठ फ़रवरी 2024 को एक्स पर एक पोस्ट किया था, "गृह मंत्रालय (एमएचए) ने यह निर्णय लिया है कि भारत और म्यांमार के बीच की मुक्त आवाजाही व्यवस्था (एफ़एमआर) को देश की आंतरिक सुरक्षा सुनिश्चित करने और म्यांमार से सटे भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों की जनसांख्यिकीय संरचना बनाए रखने के लिए समाप्त कर दिया जाए. चूँकि विदेश मंत्रालय वर्तमान में इसे समाप्त करने की प्रक्रिया में है, इसलिए गृह मंत्रालय ने एफ़एमआर को तत्काल निलंबित करने की सिफ़ारिश की है."
इस मामले पर हमने यूनाइटेड नगा काउंसिल के महासचिव वरियो शाटसांग से बात की.
उन्होंने कहा, "जब तक सीमा का मुद्दा हल नहीं होता, हम व्यापार बंद करेंगे. हमारे बहुत से नगा लोग इस इलाक़े में रहते हैं. सीमा के पार हमारे 31 से ज़्यादा गाँव हैं. आप हमारे पारिवारिक रिश्तों को ऐसे ही नहीं तोड़ सकते.''
''हम यह व्यापार बंदी सभी नगा इलाक़ों में लागू कर रहे हैं. बाहर से कोई सामान अंदर नहीं आने देंगे और यहाँ से कोई सामान बाहर नहीं जाने देंगे."
वरियो शाटसांग मुताबिक़, "अगर भारत सरकार नगा लोगों की भावनाओं और उम्मीदों को नहीं समझती तो हमें मजबूरन यह क़दम उठाना पड़ेगा. हमें अपने इतिहास, संस्कृति, परंपरा और पहचान की रक्षा करनी ही होगी."
हमने उनसे पूछा कि अगर वह नगा बहुल इलाक़ों में सामान की आवाजाही रोकेंगे तो क्या स्थानीय लोगों की मुश्क़िलें नहीं बढ़ जाएँगी?
वरियो शाटसांग ने कहा, "हमारे नगा लोग तकलीफ़ झेलने को तैयार हैं. हमें लंबे समय से नज़रअंदाज़ किया गया है. हमें अलग-थलग कर दिया गया है. हमने जो भी माँग की, जो भी गुज़ारिश की, उसे सुना ही नहीं गया. लोग बहुत निराश हैं."
हालाँकि, इस रिपोर्ट के फ़ाइल होने तक यह ख़बर आ गई थी कि मणिपुर सरकार के कहने पर यूनाइटेड नगा काउंसिल ने फिलहाल अपना 'ट्रेड एम्बार्गो' रोक दिया है.
ख़बरों के मुताबिक़ सरकार ने आश्वासन दिया है कि सीमा पर बाड़ लगाने और बिना दस्तावेज़ आने-जाने की सुविधा के मुद्दे पर कोई भी फ़ैसला लेने से पहले बातचीत की जाएगी.
और अंत में...नेशनल हाईवे-2 पर सफ़र करते हुए साफ़ दिखा कि केंद्र सरकार के दावों और ज़मीनी हक़ीक़त के बीच गहरी दूरी है.
एक ऐसी दूरी जो मणिपुर के लोगों की रोज़मर्रा की ज़िंदगी सीधे तौर पर प्रभावित कर रही है.
और जब तक यह दूरी बनी रहेगी, 'फ़्री मूवमेंट' या खुली आवाजाही का दावा सिर्फ़ दावा ही रहेगा.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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