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दिवाली से जीएसटी में हो सकते हैं ये बड़े बदलाव, जानिए आपकी जेब क्या पड़ेगा असर

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AFP via Getty Images वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण महंगाई और टैक्स के मुद्दे पर कई बार विपक्ष के निशाने पर रही हैं

जीएसटी पर मंत्रियों के एक समूह की बुधवार और गुरुवार की बैठक में केंद्र सरकार के जीएसटी के दो स्लैब ख़त्म करने के प्रस्ताव पर सहमति बन गई है. यह लागू हो जाने के बाद जीएसटी का उच्चतम स्लैब 18% रह जाएगा.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 15 अगस्त को लाल क़िले से अपने भाषण में कहा था कि इस दिवाली में देशवासियों को एक बड़ा तोहफ़ा मिलने वाला है.

पीएम मोदी ने कहा था, "पिछले आठ साल से हमने जीएसटी में बहुत बड़ा सुधार किया है. पूरे देश में टैक्स के भार को कम किया. टैक्स की व्यवस्थाओं को सरल किया. आठ साल के बाद समय की मांग है कि हम इसकी समीक्षा करें. हमने एक उच्च स्तरीय कमिटी बनाकर इसका रिव्यू शुरू किया. राज्यों से भी विचार विमर्श किया."

पीएम मोदी ने दिवाली में दोहरे राहत की बात की है और टैक्स में भारी छूट देने का वादा किया है. विशेषज्ञ भी अब इस बयान के बाद अनुमान लगा रहे हैं कि किन सेक्टर्स में आम लोगों को टैक्स में बड़ी राहत मिल सकती है.

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image Getty Images प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 15 अगस्त को अपने भाषण में दिवाली पर लोगों को डबल राहत देने की बात की थी इन चीज़ों पर लोगों को मिल सकती है राहत

गुरुवार की बैठक के बाद बिहार के वित्त मंत्री सम्राट चौधरी ने कहा, "केंद्र सरकार के 12% और 28% स्लैब को समाप्त करने के प्रस्ताव हैं. उस प्रस्ताव पर हमने विचार किया है और समर्थन किया है. अब जीएसटी काउंसिल इस पर फ़ैसला करेगा."

केंद्र सरकार के प्रस्ताव के मुताबिक़ हेल्थ और लाइफ़ इंश्योरेंस की बीमा पर लगने वाले जीएसटी को अगर हटा दिया जाता है तो यह उपभोक्ताओं के लिए बड़ी राहत होगी.

पंजाब के वित्त मंत्री हरपाल सिंह चीमा ने कहा, "सबसे पहले जो मीटिंग हुई वो लाइफ़ और हेल्थ इंश्योरेंस पर हुई. साल 2017 से जब से देश में जीएसटी लागू हुआ है, इसमें आठ साल में 27 बार संशोधन किया गया और 15 बार जीएसटी की दर (अलग-अलग वस्तुओं पर) कम की गई है."

"अब जो प्रधानमंत्री जी ने कहा है कि हम दो स्लैब लाएंगे और सभी की दिवाली अच्छी रहेगी. लेकिन जीएसटी आने के बाद पंजाब या अन्य राज्यों को हुए नुक़सान की भरपाई कौन करेगा? ये केंद्र सरकार का फॉर्म्युला था और सभी राज्यों ने इसका समर्थन किया कि एक राज्य एक टैक्स हो."

हरपाल सिंह चीमा ने आरोप लगाया है कि पंजाब को हुए नुक़सान का 60 हज़ार करोड़ केंद्र सरकार ने दे दिया है लेकिन उसे अब भी बाक़ी के 50 हज़ार करोड़ रुपये नहीं मिले हैं.

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image @AamAadmiParty हरपाल सिंह चीमा ने जीएसटी लागू होने के बाद पंजाब को बड़ा नुक़सान होने का आरोप लगाया है

अगर जीएसटी काउंसिल सरकार के प्रस्तावों को स्वीकार कर लेता है तो इसका सीधा मतलब होगा कि जिन चीज़ों पर फ़िलहाल 28% का टैक्स लगता था वह अधिकतम 18% रह जाएगा.

इससे जिन चीज़ों की क़ीमतें कम होंगी उनमें मोटरसाइकिल, साइकिल, कई तरह की मोटर व्हीकल, कुछ ट्रैक्टर्स, बिजली से चलने वाले सिंचाई के कई सामान, एयर कंडिशनिंग मशीन, बिजली से चलने वाले पंखे और कई अन्य उपकरण शामिल हैं.

वहीं अगर जीएसटी से 12% स्लैब ख़त्म हो जाता है तो सरकार के वादे के मुताबिक़ इस स्लैब के अधीन आने वाले सामान पर भी लोगों को राहत मिल सकती है, जिनमें कंडेंस्ड मिल्क, बटर, घी और स्प्रेड चीज़, खजूर, जैम, फ्रूट जेली, नट्स, डायबिटिक फूड्स, इलाज के काम में आने वाले ऑक्सीजन और कई वस्तुएं शामिल हैं.

इसके अलावा भी जीएसटी काउंसिल ने कुछ वस्तुओं या सेवाओं को मौजूदा टैक्स दर कम करने का फ़ैसला किया तो उनकी क़ीमतों पर भी असर पड़ सकता है.

जीएसटी क्या है? image Getty Images पिछले साल पॉपकॉर्न पर तीन दरों पर जीएसटी लगाए जाने के बाद बड़ा विवाद हुआ था

भारत में साल 2017 में जीएसटी यानी गुड्स एंड सर्विसेस टैक्स लागू किया गया था. इसे लागू करने के लिए 30 जून को संसद भवन में एक ख़ास कार्यक्रम आयोजित किया गया और उसी रात 12 बजे ऐप के ज़रिए इसे लागू किया गया था.

भारत में ज़्यादातर वस्तुओं और सेवाओं पर लगने वाले अलग-अलग टैक्स को हटाकर उसे जीएसटी के अधीन लाया गया था.

सरकार ने दावा किया था कि यह भारत में अब तक का सबसे बड़ा टैक्स सुधार है. इस टैक्स को 'एक देश एक कर' बताया गया.

हालांकि जीएसटी के अधीन अलग-अलग टैक्स दरों पर विपक्षी दलों ने लगातार सरकार के दावे पर सवाल खड़े किए हैं. इसके अलावा सोशल मीडिया पर भी जीएसटी को एक जटिल कर प्रणाली बताकर सरकार पर हमले किए जाते रहे हैं.

जीएसटी की हालिया बैठक के बाद कुछ दरों में बदलाव पर भी लोग आरोप लगा रहे हैं कि जीएसटी में टैक्स की अलग-अलग दरें हैं और फिर भी सरकार का दावा है कि यह सरल टैक्स है.

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जीएसटी में कितने टैक्स स्लैब हैं? image AFP via Getty Images सरकार के प्रस्तावों को जीएसटी काउंसिल की मंज़ूरी मिलने के बाद कई चीज़ों की कीमतें कम हो सकती हैं

भारत में जीएसटी के चार स्लैब रखे गए हैं, जिसके मुताबिक़ 5 फ़ीसदी, 12 फ़ीसदी, 18 फ़ीसदी और 28 फ़ीसदी टैक्स लगाया जाता है. इसके अलावा कुछ वस्तुओं पर विशेष टैक्स रेट भी लगाया गया है.

इनमें खाद्य तेल, चीनी, मसाले, चाय और कॉफ़ी (इंस्टेंट कॉफ़ी को छोड़कर), कोयला, रेलवे इकोनॉमी क्लास यात्रा और रासायनिक उर्वरक जैसी कई ज़रूरी चीज़ें 5 प्रतिशत स्लैब के अंतर्गत आती हैं.

12 प्रतिशत स्लैब में अत्यधिक प्रोसेस्ड और लग्ज़री वस्तुओं को शामिल किया गया है. इनमें फलों का जूस, कंप्यूटर, आयुर्वेदिक दवाएं, सिलाई मशीन और सस्ते होटल जैसी चीज़ें और सेवाएं शामिल हैं.

वित्तीय सेवाओं और बीमा, दूरसंचार सेवाओं, आईटी सेवाओं, ग़ैर-एसी रेस्तरां, सस्ते कपड़े और जूते सहित ज़्यादातर अन्य वस्तुओं और सेवाओं पर 18 प्रतिशत जीएसटी लगाया गया है.

28 फ़ीसदी टैक्स स्लैब में लग्ज़री वस्तुएं और सेवाएं शामिल हैं. इनमें शीर्ष स्तर के वाहन, एसी-फ्रिज जैसे उत्पाद, तंबाकू और महंगे होटल शामिल हैं.

इसके अलावा कुछ श्रेणियों के लिए विशेष दरें भी हैं. मसलन सोने और क़ीमती पत्थरों के लिए तीन प्रतिशत, छोटे उत्पादों के लिए एक प्रतिशत और कुछ रेस्तरां के लिए पांच प्रतिशत की विशेष जीएसटी दर लागू है.

कैसे बढ़ाई-घटाई जाती हैं दरें image AFP via Getty Images जीएसटी और महंगाई के ख़िलाफ़ कई बार विपक्ष ने विरोध प्रदर्शन भी किया है

हर साल जीएसटी काउंसिल की बैठक में इसे लेकर कई तरह के फ़ैसले होते हैं. इसमें नए टैक्स या टैक्स दरों में बदलाव का प्रस्ताव रखा जाता है और काउंसिल की स्वीकृति के बाद ही इसे लागू किया जाता है.

झारखंड सरकार में मंत्री और पूर्व में राज्य का वित्त मंत्रालय संभाल चुके रामेश्व उरांव ने बीबीसी को बताया था, "प्रस्ताव के समर्थन या विरोध में जिस पक्ष में 50 फ़ीसदी से ज़्यादा वोट होता है, उसे ही माना जाता है. इसमें राज्यों के पास एक वोट होता है."

"राज्य की तरफ़ से बैठक में मुख्यमंत्री, वित्त मंत्री या कोई अन्य भी हिस्सा ले सकता है. लेकिन अभी विपक्षी दलों की कुछ ही राज्यों में सरकार है तो हम जो चाहते हैं वो नहीं हो सकता, बल्कि केंद्र सरकार जो चाहती है, वही होता है."

रामेश्वर उरांव के मुताबिक़ जीएसटी के मामले में राज्यों के पास कोई अधिकार नहीं होता है.

उनके मुताबिक़, "राज्य के पास डीज़ल और पेट्रोल पर लगने वाले वैट को तय करने का अधिकार है, इसलिए हम उसे छोड़ना नहीं चाहते हैं ताकि अपनी ज़रूरत के हिसाब से वैट को कम या ज़्यादा कर सकें. इसके अलावा शराब के मामले में भी राज्य टैक्स लगाने के अपने अधिकार को खोना नहीं चाहते हैं."

बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित

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