Next Story
Newszop

नेपाली नववर्ष पर वीडियो संदेश जारी कर पूर्व राजा ज्ञानेंद्र क्या हासिल करना चाहते हैं?

Send Push
Gyanendra Shah's Secretariat नेपाल के पूर्व नरेश ज्ञानेंद्र शाह ने नववर्ष की पूर्व संध्या पर पहली बार वीडियो के जरिये संदेश दिया

करीब 17 साल पहले पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह को शाही परिवार का निवास नारायणहिटी दरबार छोड़ना पड़ा था. इसके बाद से वह समय-समय पर अपना बयान जारी करते रहते हैं.

नेपाली नववर्ष की पूर्व संध्या पर भी एक बयान उन्होंने जारी किया है लेकिन इस बार इसकी काफी चर्चा है. उन्होंने पहली बार कहा है कि वह अब भी 'संवैधानिक राजशाही' के पक्ष में हैं.

इन दिनों ज्ञानेंद्र शाह नेपाल की राजनीति में दोबारा सक्रिय हैं. सरकार और लोकतंत्र समर्थक दल कह रहे हैं कि अगर उन्होंने ऐसा करना जारी रखा तो उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई हो सकती है.

इस माहौल में भी पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह ने अपने संदेश में यह भी कहा है कि देश की पूरी व्यवस्था को नए सिरे से सोचना चाहिए.

image BBC

बीबीसी हिंदी के व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ने के लिए यहाँ करें

image BBC

पिछले महीने राजशाही समर्थकों ने एक विरोध प्रदर्शन किया था, जो बाद में हिंसक हो गया था. इसमें दो लोगों की मौत भी हो गई थी. इसके साथ ही कई जगहों पर आगजनी, तोड़फोड़ और लूटपाट की भी घटनाएं हुई थीं.

इन घटनाओं के बाद लोकतंत्र समर्थक दलों ने ज्ञानेंद्र शाह के ख़िलाफ़ सख़्त कार्रवाई की मांग की थी. ज्ञानेंद्र शाह ने इन घटनाओं पर दुख जताया है.

ज्ञानेंद्र शाह ने 11 जून 2008 को दरबार छोड़ा था. इसके बाद उन्होंने खुद को लंबे समय तक 'पूर्व राजा' के तौर पर ही पेश किया.

पिछले चार साल से वह हर नववर्ष पर खुद को पूर्व राजा बताते हुए शुभकामना संदेश जारी कर रहे थे लेकिन 14 अप्रैल 2022 को उन्होंने 'पूर्व' शब्द हटाकर खुद को 'श्री ५ महाराजाधिराज' लिखा.

बीबीसी ने बीते पांच सालों के दौरान ज्ञानेंद्र शाह की तरफ़ से नववर्ष पर जारी किए गए सभी शुभकामना संदेशों का अध्ययन किया है और ये जानने की कोशिश की है कि आख़िर उसके मायने क्या हैं?

शुभकामना संदेशों में बदली 'राजनीतिक भाषा' image Getty Images आठ अप्रैल को राजशाही के समर्थन में हुए प्रदर्शन में हिस्सा लेती कुछ महिलाएं

साल 2021 के नए वर्ष पर दिए गए शुभकामना संदेश में पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह ने यह संकेत दिया कि राजनीतिक दलों में आपसी समझ नहीं है.

उन्होंने कहा कि देश में राजनीति करने वालों को नैतिकता, जनता के प्रति ज़िम्मेदारी, ईमानदारी और सच्चाई बनाए रखनी चाहिए.

साल 2022 के नए साल पर दिए गए संदेश में उन्होंने अपने नाम के आगे से 'पूर्व' शब्द हटा दिया.

इस बार उन्होंने सरकार को यह कहकर सावधान किया कि देश को किसी एक देश के साथ पूरी तरह न जुड़ना चाहिए और न किसी देश से दूरी बनानी चाहिए.

इस साल उनका नाराज़गी भरा रुख़ पहले से ज़्यादा साफ दिखाई दिया. उन्होंने कहा कि सिर्फ बड़े-बड़े नारे, वादे और बिना मतलब के बदलाव से आम लोग न तो शांत हैं और न ही संतुष्ट हैं.

यह सोचने की बात है. उसी साल नेपाल में स्थानीय, राज्य और केंद्रीय चुनाव हुए. इन चुनावों में जनता का भरोसा पुराने राजनीतिक दलों पर कम होता दिखा.

साल 2023 में दिए गए नए साल के संदेश में ज्ञानेंद्र शाह ने कहा था कि आज की युवा पीढ़ी सरकार की व्यवस्था और उसके कामकाज से बहुत नाराज़ है.

उन्होंने कहा था कि पिछले 30 साल से जो कोशिशें हो रही हैं, उनसे युवा अब पूरी तरह नाराज़ होकर बदलाव की सोच रखने लगे हैं.

image BBC

पिछले साल राष्ट्रीय स्वतंत्र पार्टी ने राज्य चुनाव में हिस्सा नहीं लिया था और काठमांडू के मेयर बालेन शाह ने भी राज्य चुनाव में वोट नहीं दिया.

उसी साल दिए गए संदेश में ज्ञानेंद्र शाह ने कहा कि आम लोगों की उम्मीदों और भावनाओं को समझते हुए आगे बढ़ना चाहिए.

साल 2024 के नए साल पर उन्होंने कहा कि जो लोग देश से प्यार करते हैं और जनता की भलाई चाहते हैं, उन्हें मिलकर एक सोच बनानी चाहिए.

उन्होंने यह भी कहा कि देश में कानून, नियम, बोलचाल और काम करने का तरीका तो बदला है लेकिन असली बदलाव नहीं आया.

उन्होंने देश की अस्थिरता पर चिंता जताते हुए कहा कि अब समय है कि सब कुछ दोबारा सोचें, मिलकर बात करें, किसी को अलग न करें और सही सोच के साथ आगे बढ़ें.

राजशाही के पक्ष में पूर्व राजा का बयान image BBC पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह ने कहा कि पृथ्वीनारायण शाह के 'दिव्योपदेश' को देश चलाने का मुख्य आधार बनाया जाना चाहिए

नववर्ष के अलावा दशहरा, दीपावली, लोकतंत्र दिवस जैसे कई मौकों पर दिए गए शुभकामना संदेशों में पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह ने बीते कुछ सालों में राजनीतिक असंतोष के साथ-साथ व्यवस्था में बदलाव को लेकर भी अपनी राय रखी है.

जानकारों का कहना है कि उन्होंने कई बार इन संदेशों के ज़रिए अपने विचार सामने रखे हैं. इस बार उन्होंने पहली बार वीडियो संदेश के ज़रिए नववर्ष की शुभकामना दी है.

इस संदेश में उन्होंने साफ शब्दों में खुद को संवैधानिक राजशाही के पक्ष में बताया है. अपने संदेश में उन्होंने कहा है, "जनता की भावनाओं के मुताबिक़ चलने वाले बहुदलीय लोकतंत्र और संवैधानिक राजशाही की परंपरा में हमारी आस्था रही है."

उन्होंने यह भी कहा कि जनता की बदलती इच्छाओं को समझा जाना चाहिए और वह इस बात को साफ मानते हैं कि राज्य शक्ति का असली स्रोत जनता ही होती है.

हालांकि, 'बाह्रखरी' नाम के समाचार पोर्टल के चीफ़ एडिटर प्रतीक प्रधान का मानना है कि पूर्व राजा के हाल के संदेशों में दोबारा सक्रिय होने की इच्छा दिखाई देती है.

उन्होंने कहा, "लगता है कि पूर्व राजा को अब यह यकीन होने लगा है कि उन्हें जनता ने नहीं, बल्कि राजनीतिक दलों ने हटाया था. उन्हें लगने लगा है कि जनता उनके साथ है और संवैधानिक राजशाही के नाम पर वो राजशाही को फिर से वापस लाकर अपने तरीके से शासन चला सकते हैं."

प्रतीक प्रधान का यह भी कहना है कि नेपाल में राजशाही इसलिए ख़त्म हुई क्योंकि ज्ञानेंद्र शाह खुद कार्यकारी शासन को अपने हाथ में लेना चाहते थे.

'घटना और विचार' साप्ताहिक पत्रिका के चीफ़ एडिटर देवप्रकाश त्रिपाठी का कहना है कि पूर्व राजा ने अपने हालिया संदेश में संवैधानिक राजशाही को लेकर दोबारा साफ बात इसलिए कही है ताकि यह शंका दूर हो कि वह किसी आंदोलन के ज़रिए राजशाही को पूरी तरह वापस लाना चाहते हैं.

image BBC

त्रिपाठी कहते हैं, "मुझे लगता है उन्होंने यह महसूस किया कि यह साफ़ कर देना ज़रूरी है कि वह जिस राजशाही की बात कर रहे हैं, वह संवैधानिक होगी."

उन्होंने यह भी कहा, "कई बातों से यह समझा जा सकता है कि पूर्व राजा अब राजशाही की वापसी के पक्ष में हैं.वह काफ़ी समय से राष्ट्रवाद, राष्ट्रीय एकता और सामाजिक मेल-जोल को लेकर एक जैसे ही संदेश देते आए हैं.''

क्या आंदोलन से राजशाही वापस आ सकती है? image BBC पिछले महीने राजशाही समर्थकों ने एक विरोध प्रदर्शन किया. इस प्रदर्शन में दो लोगों की मौत हो गई थी.

पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह के समर्थन में अगर आंदोलन होता है, तो क्या उससे राजशाही लौट सकती है?

इस पर पत्रकार प्रतीक प्रधान और देवप्रकाश त्रिपाठी का साफ कहना है कि आंदोलन के ज़रिए राजशाही की वापसी संभव नहीं है.

प्रतीक प्रधान कहते हैं, "मुझे अफ़सोस होता है जब मैं देखता हूं कि पूर्व राजा कुछ ग़लत लोगों को आगे करके अपनी भावनाएं पूरी करने की कोशिश कर रहे हैं."

उनका कहना है, "अगर लोकतंत्र में फिर से राजशाही लानी है, तो उसे जनता के द्वारा चुना जाना होगा. इसके लिए संविधान को बदलना पड़ेगा और ऐसा करने का एकमात्र तरीका चुनाव है. आंदोलन से यह मुमकिन नहीं है."

image BBC

देवप्रकाश त्रिपाठी भी यही मानते हैं कि जब तक बड़े राजनीतिक दल साथ न दें, तब तक किसी आंदोलन से राजशाही की वापसी संभव नहीं है.

वह कहते हैं, "सिर्फ राजा की इच्छा से राजशाही नहीं लौटती. यह तभी मुमकिन है जब कांग्रेस और एमाले जैसे बड़े दल सहमत हों. अगर ये पार्टियां साथ नहीं देतीं तो फिर राजशाही का लौटना लगभग असंभव है."

त्रिपाठी का यह भी कहना है कि अगर किसी तरह राजशाही लौट भी आएगी तो वह ज़्यादा दिनों तक टिक नहीं पाएगी.

'राजनीतिक इरादे की झलक' image BBC पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह ने नववर्ष की पूर्व संध्या पर बयान जारी कर पहली बार कहा है कि वह अब भी 'संवैधानिक राजशाही' के पक्ष में हैं.

नए साल के अपने हालिया शुभकामना संदेश में पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह ने नेपाल में राजशाही की भूमिका की चर्चा की है. उन्होंने यह भी प्रस्ताव दिया है कि पृथ्वीनारायण शाह के 'दिव्योपदेश' को देश चलाने का मुख्य आधार बनाया जाना चाहिए.

उन्होंने देश में सुशासन, शिक्षा, स्वास्थ्य और बेरोजगारी जैसी समस्याओं की बात की है. इसके साथ ही यह भी कहा है कि जिस तरह राप्रपा के नेता 'संरचनात्मक बदलाव' की बात करते हैं, वैसी ही सोच अब ज़रूरी है.

अपने संदेश में उन्होंने कहा है, "जनता की भावनाएं और इच्छाएं समझकर देश की पूरी व्यवस्था में बदलाव और सुधार की ज़रूरत साफ़ तौर पर दिखती है."

पत्रकार देवप्रकाश त्रिपाठी का मानना है कि पूर्व राजा काफी पहले से इस तरह के बदलाव की बात करते आ रहे हैं.

उन्हें लगता है कि ज्ञानेंद्र शाह की ये सोच नारायणहिटी दरबार छोड़ने के बाद से ही उनके बयानों में दिखता रहा है.

त्रिपाठी कहते हैं, "24 अप्रैल 2006 को जिन शर्तों पर संसद को बहाल किया गया था, उसके बाद राजनीतिक दल उस सहमति से आगे निकल गए. पूर्व राजा चाहते हैं कि देश दोबारा उसी बिंदु पर लौटे और अगर बदलाव करना है तो वहीं से शुरू हो."

इस बार दिए गए शुभकामना संदेश में पूर्व राजा ने कूटनीति और वैश्विक व्यापार जैसे मुद्दों को भी शामिल किया है.

उन्होंने कहा, "हम देश में अस्थिरता, अशांति, अराजकता, गरीबी और भ्रष्टाचार का अंत चाहते हैं. इसके लिए जनता जो भी प्रयास करेगी, हम उसके साथ हैं."

image Getty Images राजशाही के समर्थन में हुए प्रदर्शन के दौरान एक बैनर

विश्लेषकों का मानना है कि ज्ञानेंद्र शाह पहले भी भ्रष्टाचार और अव्यवस्था को लेकर बयान देते रहे हैं लेकिन इस बार संदेश पहले से अलग है. इस बार उन्होंने केवल शांति और एकता की बात नहीं की बल्कि उसमें राजनीतिक इरादा भी झलकता है.

अपने संदेश के आख़िर में उन्होंने कहा, "हमें यह विश्वास है कि आने वाला साल नेपाल के इतिहास में एक यादगार और सुनहरा समय बन सकता है और बनना भी चाहिए."

त्रिपाठी कहते हैं, "अभी जो लोग मौजूदा व्यवस्था से नाराज़ हैं, उनकी ओर से समर्थन मिलने के बाद पूर्व राजा चाहते हैं कि अब बदलाव जनता की इच्छा के मुताबिक़ हो."

कई जानकारों का मानना है कि इससे पहले प्रजातंत्र दिवस पर दिए गए अपने संदेश में भी पूर्व राजा ने जनता से साथ आने की अपील की थी. उसके बाद राजशाही समर्थक ताकतों की गतिविधियां बढ़ने लगी थीं.

बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित

(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां कर सकते हैं. आप हमें , , , और पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)

image
Loving Newspoint? Download the app now