जम्मू कश्मीर के पहलगाम में हुए चरमपंथी हमले के बाद दुनियाभर के ज़्यादातर देशों ने इस घटना की निंदा की है और भारत के प्रति अपनी संवेदना जताई है.
ने भी घटना की कड़ी निंदा की है और कहा है कि वो आतंकवाद के ख़िलाफ़ है. हालांकि जानकार ये कि मौजूदा भूराजनीतिक स्थिति को देखते हुए चीन इस विवाद से दूरी बनाए रखना चाहेगा. चीन और पाकिस्तान के बीच क़रीबी रही है और हाल के समय में भारत का चीन के साथ सीमा विवाद भी सुर्खियों में रहा है.
भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव के माहौल में आमतौर पर अमेरिका का रुख़ पुराने समय में पाकिस्तान के साथ देखा गया है, इसमें सबसे उल्लेखनीय मामला साल 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध का है.
लेकिन मंगलवार को पहलगाम में हुए हमले के बाद अमेरिका ने खुलकर भारत को अपना समर्थन दिया है.
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जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में मंगलवार को पर्यटकों पर चरमपंथी हमला हुआ था. इस हमले में कम से कम 26 लोगों की मौत हो गई, जबकि अन्य कई लोग घायल हो गए. हमले में ज़्यादतर पीड़ित पर्यटक थे.
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पर पहलगाम में हुए चरमपंथी हमले के बारे में लिखा, "कश्मीर से अत्यंत दुखद ख़बर आ रही है. आतंक की इस लड़ाई में अमेरिका भारत के साथ खड़ा है. प्रधानमंत्री मोदी और भारत के लोगों को हमारा पूर्ण समर्थन है और गहरी सहानुभूति है."
जिस समय पहलगाम में हमला हुआ, उस वक़्त अमेरिका के उपराष्ट्रपति जेडी वेंस अपने परिवार के साथ भारत की यात्रा पर थे. उन्होंने भी इस हमले के पीड़ितों के प्रति अपनी संवेदना जताई.
वेंस ने अपनेअकाउंट पर लिखा, "उषा और मैं भारत के पहलगाम में हुए भयानक आतंकवादी हमले के पीड़ितों के प्रति अपनी संवेदना व्यक्त करते हैं. इस भयानक हमले में हमारे संवेदनाएं और प्रार्थनाएं उनके साथ हैं."
इससे पहले अमेरिका की राष्ट्रीय खुफिया निदेशक ने सोशल मीडिया एक्स पर भारत को अमेरिकी समर्थन की बात दोहराई है.
तुलसी गबार्ड ने लिखा, "हम पहलगाम में 26 हिंदुओं को निशाना बनाकर किए गए भीषण इस्लामी चरमपंथी हमले के ख़िलाफ़ भारत के साथ एकजुटता से खड़े हैं. मेरी प्रार्थनाएं और गहरी संवेदनाएं उन लोगों के साथ हैं, जिन्होंने अपने प्रियजनों को खो दिया है. इस जघन्य हमले के लिए ज़िम्मेदार लोगों के ख़िलाफ़ कार्रवाई में हम आपके साथ हैं.''
क्या कहते हैं विशेषज्ञ?क्या अमेरिकी नेताओं के इस बयान से माना जा सकता है कि अगर भारत और पाकिस्तान के बीच का यह तनाव किसी तरह के सैन्य संघर्ष की तरफ बढ़ता है तो अमेरिका का समर्थन भारत के पक्ष में होगा?
मिडिल ईस्ट इनसाइट्स प्लेटफ़ॉर्म की संस्थापक डॉक्टर शुभदा चौधरी कहती हैं, "अमेरिका का भारत की तरफ ज़्यादा झुकाव है और इसके दो कारण हैं एक तो ये कि भारत क्वाड का सदस्य है. दूसरी वजह यह है कि अभी अमेरिका और चीन में टैरिफ़ वॉर चल रहा है, और चीन-पाकिस्तान एक दूसरे के काफ़ी क़रीब हैं तो अमेरिका की नज़र इस पर रहेगी."
क्वाड शब्द 'क्वाड्रीलेटरल सुरक्षा वार्ता' के क्वाड्रीलेटरल (चतुर्भुज) से लिया गया है. इस गुट में भारत के साथ अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया शामिल हैं.

हालांकि शुभदा चौधरी के मुताबिक़, "इस समय ट्रंप नहीं चाहेंगे कि अमेरिका की सेना ज़मीनी स्तर पर किसी संघर्ष में उलझे. इस समय ट्रंप का फ़ोकस अमेरिका की आर्थिक स्थिति और वित्तीय घाटे को सुधारना है. इसलिए इस समय वो हालात पर बहुत संभल कर नज़र रखेंगे."
वो कहती हैं, "एक ख़ास बात यह है कि कोई भी फ़ैसला लेने से पहले अमेरिकी ख़ुफ़िया विभाग यह जानकारी जुटाएगा कि (पहलगाम में) हुआ क्या था और कैसे हुआ. वो ये भी आकलन लगाएगा कि इस तनाव का आने वाले समय में क्या असर रहेगा? जहां तक बात है कि क्या अमेरिका सीधे इस तनाव में शामिल हो सकता है, तो नहीं. वो अप्रत्यक्ष तौर पर अपने सहयोगी सऊदी अरब के माध्यम से इस मामले में दखल दे सकता है."
जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए चरमपंथी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान में बढ़े तनाव के बीच कुछ देशों ने कूटनीतिक प्रयास शुरू कर दिए हैं, और इनमें सउदी अरब शामिल है.
के विदेश मंत्री फै़सल बिन फरहान अल सउद ने जहां पाकिस्तान और भारत के अपने समकक्षों से बात की है वहीं ईरान के विदेश मंत्री ने दोनों देशों के बीच मध्यस्थता की पेशकश की है.
शुभदा चौधरी कहती हैं, "जहां तक ट्रंप का सवाल है तो उनकी प्राथमिकता में अभी भारत, पाकिस्तान या दक्षिण एशिया बहुत ज़्यादा नहीं है. एक कारोबारी के तौर पर उनके ख़ुद के घरेलू मामले उनके लिए अभी ज़्यादा मायने रखते हैं. इनमें इमिग्रेशन, आर्थिक नीति, टैरिफ़ वॉर और महंगाई के मुद्दे शामिल हैं."
"सबसे महत्वपूर्ण यह है कि अगर कोई भारत-पाकिस्तान के बीच चल रहे तनाव में दखल देना भी चाहे तो दोनों देशों में अतिवादी विचारधारा के लोगों का युद्ध को लेकर जो रवैया है, उसमें क्या पर्दे के पीछे की कोई कूटनीति काम कर पाएगी? मुझे नहीं लगता कि यह काम कर पाएगी."
जम्मू कश्मीर के पहलगाम में मंगलवार को हुए चरमपंथी हमले के बाद पीएम मोदी ने गुरुवार को बिहार के मधुबनी में एक रैली में कहा, "हमला करने वाले आतंकियों को कल्पना से भी बड़ी सज़ा मिलेगी."
उन्होंने यह भी कहा कि "अब आतंकियों की बची ज़मीन को भी मिट्टी में मिलाने का समय आ गया है. 140 करोड़ भारतीयों की इच्छाशक्ति अब आतंक के आकाओं की कमर तोड़ कर रहेगी."
शुभदा चौधरी मानती हैं, "दोनों देशों के बीच संघर्ष होगा- लेकिन यह कितना बड़ा होगा और इसका दायरा क्या होगा, यह कह पाना अभी मुश्किल है. हालांकि, दोनों ही देश अपने-अपने लोगों को शांत करने के लिए कुछ न कुछ करेंगे."
दूसरी तरफ कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि पाकिस्तान से अमेरिका के पुराने और मज़बूत संबंध रहे हैं और अमेरिका नहीं चाहता है कि वो दक्षिणा एशिया में भारत को पूरी छूट दे.
दक्षिण एशिया की भू-राजनीति के जानकार और साउथ एशियन यूनिवर्सिटी में एसोसिएट प्रोफ़ेसर धनंजय त्रिपाठी का कहते हैं, "अगर सीधे शब्दों में कहें तो अमेरिका किसी के साथ नहीं है. हाल के दिनों में उसके भारत के साथ संबंध बेहतर हुए हैं, लेकिन वो पाकिस्तान का रणीनीतिक साझेदार रहा है, दोनों के बीच सैन्य संबंध भी रहे हैं."
उनका कहना है कि भले ही पाकिस्तान ने कभी तालिबान को छिपकर समर्थन दिया हो और अमेरिका ने पाकिस्तान के ख़िलाफ़ छोटे-मोटे कदम उठाए हों, लेकिन पाकिस्तान ने कभी अमेरिका को खुलकर चुनौती भी नहीं दी है.
हाल ही में अमेरिकी वाणिज्य विभाग ने पाकिस्तान, चीन, संयुक्त अरब अमीरात समेत आठ देशों की 70 कंपनियों पर निर्यात प्रतिबंध लगा दिया है.
जिन कंपनियों पर प्रतिबंध लगाया गया है उनमें पाकिस्तान की 19, चीन की 42 और संयुक्त अरब अमीरात की चार कंपनियां हैं. इनके अलावा ईरान, फ़्रांस, दक्षिण अफ़्रीका, सेनेगल और ब्रिटेन की कंपनियां भी प्रतिबंध की सूची में शामिल हैं.
अमेरिकी सरकार ने दावा किया है कि जिन संस्थाओं पर पाबंदी लगाई गई है वह अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा और विदेश नीति के हितों के विरुद्ध काम कर रही हैं.
इससे पहले अप्रैल 2024 में भी अमेरिका ने चीन की तीन और बेलारूस की एक कंपनी पर पाकिस्तान के मिसाइल प्रोग्राम की तैयारी और उसमें सहयोग करने के आरोप में पाबंदी लगाने का ऐलान किया था.
हालांकि धनंजय त्रिपाठी मानते हैं कि पाकिस्तान के ख़िलाफ़ कुछ कार्रवाइयों के बावजूद भी वो भारत को एशिया के इस क्षेत्र में पूरी छूट नहीं देना चाहता है.
धनंजय त्रिपाठी कहते हैं, "अमेरिका में रणनीतिक बिरादरी के लोग नहीं चाहते हैं कि वो भारत को पूरा दक्षिण एशिया सौंप दें, ऐसे लोग भारत पर पूरा भरोसा नहीं करते हैं. वो इस क्षेत्र में अपना दखल नहीं छोड़ना चाहते."
धनंजय त्रिपाठी कहते है कि मौजूदा माहौल में अमेरिका ने संकेत यही दिया है कि वो पाकिस्तान पर दबाव डालेगा, भले ही वो भारत के प्रति संवेदना प्रकट करे या पाकिस्तान पर गुस्सा ज़ाहिए करे.
'कई मोर्चों पर उलझा है अमेरिका'
नई दिल्ली स्थित ऑब्ज़र्वर रिसर्च फ़ाउंडेशन के अध्ययन और विदेश नीति विभाग के उपाध्यक्ष प्रोफ़ेसर हर्ष वी पंत भी मानते हैं कि ऐसे मामलों में अमेरिका किसी देश के पक्ष में नहीं रहेगा बल्कि वो अपना पक्ष देखेगा.
हर्ष वी पंत कहते हैं, "फ़िलहाल अमेरिका की प्रतिक्रिया हमारे पक्ष में रही है लेकिन भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध जैसे हालात हो जाते हैं तो भी अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप को कोई फर्क नहीं पड़ेगा और न ही अमेरिका इस मसले में किसी तरह की सक्रिय भूमिका में रहेगा."
उनका कहना है कि भले ही पहले युद्ध के हालात में अमेरिका का समर्थन पाकिस्तान के पक्ष में रहा हो लेकिन अब समय बदल गया है. अगर मौजूदा तनाव ज़मीनी स्तर पर आगे बढ़ता है तो देखना होगा कि अब अमेरिका का रुख़ क्या रहता है.
अमेरिका के सामने एक बड़ी समस्या रूस और यूक्रेन के बीच चल रहा युद्ध है. राष्ट्रपति ट्रंप लगातार इस युद्ध को समाप्त करने की कोशिश में लगे हुए हैं, क्योंकि इसका बड़ा आर्थिक बोझ अमेरिका पर भी पड़ा है.
ट्रंंप के मौजूदा टैरिफ़ से दुनियाभर की अर्थव्यवस्था में उथल-पुथल मची हुई है. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने कुछ ही दिन पहले टैरिफ़ की वजह से अमेरिका और चीन समेत कई देशों के आर्थिक विकास पर नकारात्मक असर पड़ने अनुमान भी लगाया है.
विदेश मामलों के जानकार क़मर आगा कहते हैं, "अमेरिका यही चाहेगा कि भारत और पाकिस्तान के बीच यह मामला बातचीत से हल हो जाए, क्योंकि वो पहले से ही कई मोर्चों पर उलझा हुआ है, चाहे वो यूक्रेन युद्ध हो, ग़ज़ा का मोर्चा हो या यमन में हूती विद्रोहियों पर हमले की बात हो, जहां अमेरिका अब ज़मीनी कार्रवाई भी कर सकता है."
क़मर आगा मानते हैं कि अमेरिका लगातार कोशिश के बाद भी रूस-यूक्रेन युद्ध को ख़त्म कर पाने में सफल नहीं हो सका है और वो मौजूदा समय में टैरिफ़ वॉर में उलझा हुआ है. वो नहीं चाहेगा कि वो भारत और पाकिस्तान किसी युद्ध में उलझें.
दरअसल ट्रंप ने कहा था कि वो राष्ट्रपति बनते ही रूस-यूक्रेन युद्ध को ख़त्म करा देंगे. ट्रंप ने इसकी कोशिश लगातार जारी रखी है, लेकिन इस मामले में उन्हें कामयाबी नहीं मिल पाई है.
क़मर आगा कहते हैं, "मुझे लगता है कि पीएम मोदी इस तनाव को लंबे समय से लिए जारी रखेंगे ताकि पाकिस्तान पर दबाव बढ़ा सकें जो पहले से बलूचिस्तान जैसे इलाक़े में उलझा हुआ है, जहां पूरी ट्रेन ही हाइजैक हो जाती है."
पिछले महीने ही पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में चार सौ से ज़्यादा यात्रियों से भरी एक ट्रेन को हथियारबंद चरमपंथियों ने अगवा कर लिया था.
भारत और पाकिस्तान के बीच चल रहे इस तनाव और ख़ास कर भारत के साठ साल पुराने सिंधु नदी जल समझौते को निलंबित करने के फ़ैसले पर बीबीसी संवाददाता आज़ादेह मोशिरी ने पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख़्वाजा आसिफ़ से सवाल किया.
ख़्वाजा आसिफ़ ने कहा, "हम वर्ल्ड बैंक से संपर्क करेंगे. इस संधि पर साल 1960 में हस्ताक्षर हुए थे. ये लंबे समय तक एक सफल संधि रही है. आप इससे एकतरफ़ा बाहर नहीं जा सकते."
उन्होंने कहा, "इसे जंग का ऐलान माना जाएगा क्योंकि आप हमें पानी से वंचित रखना चाह रहे हैं, जो कि हमारा अधिकार है. संधि में जो लिखा था, भारत उस पर राजी हुआ था. हम चाहते हैं कि ये संधि बनी रहे."
पाकिस्तानी रक्षा मंत्री ने कहा है कि भारत ने जो कुछ किया है हम बस उसका जवाब दे रहे हैं, "हमें जवाब देना होगा, उसी तरह और उसी भाषा में."
दोनों देशों के बीच बढ़ते तनाव के बीच पाकिस्तानी सेना की तैयारी पर ख़्वाजा आसिफ़ ने कहा है कि "हमें किसी भी हालात के लिए तैयारी करने की ज़रूरत नहीं है, हम तैयार हैं."
कश्मीर में चरमपंथियों को पाकिस्तान से समर्थन मिलने के भारत के आरोप पर ख़्वाजा आसिफ़ ने कहा, "कश्मीर में जो कुछ हो रहा है हमारा उससे कोई संबंध नहीं है. पाकिस्तान की तरफ से भारत में घुसपैठ असंभव है. दोनों तरफ सीमाओं पर हज़ारों की संख्या में सेना के जवान तैनात हैं."
ख़्वाजा आसिफ़ ने कहा है कि कश्मीर से जुड़े जो चरमपंथी संगठन पाकिस्तान में मौजूद हैं वो निष्क्रीय हो चुके हैं, उनका दौर ख़त्म हो चुका है.
संयुक्त राष्ट्र की अपीलपहलगाम हमले के बाद बुधवार को भारत ने पाकिस्तान के नागरिकों के वीज़ा सस्पेंड करने, अटारी इंटिग्रेटेड चेक पोस्ट को बंद करने और सिंधु जल संधि की निलंबित करने जैसे कई बड़े फ़ैसले लिए.
इसके जवाब गुरुवार को पाकिस्तान ने भी कई क़दम उठाए. इनमें भारतीय नागरिकों को पाकिस्तान से वापस जाने को कहने, वाघा सीमा और पाकिस्तान के एयरस्पेस को बंद करने का फ़ैसला शामिल है.
इसके अलावा पाकिस्तान ने शिमला समझौते समते दोनों देशों के बीच हुए सारे द्विपक्षीय समझौते निलंबित कर दिए हैं. दोनों देशों ने एक-दूसरे के यहां राजनयिक स्टाफ़ की संख्या को भी कम करने का फ़ैसला किया है.
भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव के बीच संयुक्त राष्ट्र ने भी दोनों देशों को संयम बरतने की सलाह दी है.
संयुक्त राष्ट्र ने गुरुवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान पहलगाम में हुए चरमपंथी हमले की निंदा की. औक कहा कि दोनों देशों को "अधिकतम संयम बरतना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि दोनों देशों के बीच स्थिति और ज़्यादा न बिगड़े."
संगठन ने महासचिव एंटोनियो गुटेरेस के प्रवक्ता स्टीफ़न दुजारिक ने कहा कि पिछले 24 घंटों में महासचिव का किसी भी सरकार के साथ 'सीधा संपर्क नहीं हुआ है.' लेकिन वे चिंतित हैं और 'स्थिति पर नज़र रख रहे हैं.'
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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