New Delhi, 6 अक्टूबर . Supreme court ने Monday को तेलंगाना में स्थानीय निकाय चुनावों में पिछड़े वर्ग (ओबीसी) को 42 प्रतिशत आरक्षण देने के Government के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया. कोर्ट ने याचिकाकर्ता वंगा गोपाल रेड्डी को याचिका वापस लेने की अनुमति दी.
याचिकाकर्ता ने कहा था कि तेलंगाना Government द्वारा 26 सितंबर को जारी आदेश में पिछड़े वर्ग को 42 प्रतिशत आरक्षण दिया गया. इसके साथ ही अनुसूचित जातियों (एससी) को 15 प्रतिशत और अनुसूचित जनजातियों (एसटी) को 10 प्रतिशत आरक्षण पहले से ही है. ऐसे में स्थानीय निकायों में कुल आरक्षण 67 प्रतिशत हो गया है, जो संविधान और Supreme court के पूर्व फैसलों के अनुसार, तय 50 प्रतिशत की सीमा का उल्लंघन करता है.
जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने यह याचिका खारिज करने का संकेत दिया, जिसके बाद याचिकाकर्ता के वकील ने इसे वापस लेने की अनुमति मांगी.
सुनवाई के दौरान जस्टिस नाथ ने सवाल किया कि जब मामला पहले से ही तेलंगाना हाईकोर्ट में लंबित है, तो याचिकाकर्ता सीधे Supreme court क्यों आए?
उन्होंने यह भी पूछा कि क्या सिर्फ हाईकोर्ट द्वारा स्टे न देने से कोई याचिकाकर्ता सीधे अनुच्छेद 32 के तहत Supreme court का रुख कर सकता है?
याचिका में कहा गया था कि तेलंगाना पंचायत राज अधिनियम, 2018 की धारा 285ए में स्पष्ट रूप से 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण पर रोक है और राज्य Government का यह आदेश न केवल इस कानून का उल्लंघन है, बल्कि Supreme court के कई फैसलों के भी खिलाफ है.
याचिकाकर्ता ने Supreme court से अनुरोध किया था कि वह इस आदेश को असंवैधानिक घोषित करे और राज्य को संविधान के अनुरूप चुनाव कराने के निर्देश दे.
इसके साथ ही, याचिका में यह भी कहा गया कि Government ने यह फैसला एक सदस्यीय आयोग की रिपोर्ट के आधार पर लिया, जो न तो सार्वजनिक डोमेन में है और न ही विधानमंडल में उस पर बहस हुई. यह प्रक्रिया के. कृष्णमूर्ति मामले में Supreme court द्वारा तय मानकों का उल्लंघन है.
याचिका में Maharashtra, बिहार और Rajasthan के मामलों का हवाला भी दिया गया, जहां अदालतों ने 50 प्रतिशत की आरक्षण सीमा को पार करने के प्रयासों को खारिज किया था.
यह मामला 8 अक्टूबर को तेलंगाना हाईकोर्ट में सुनवाई के लिए सूचीबद्ध है.
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वीकेयू/एबीएम
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