क्वेटा, 15 मई . बलूच यकजेहती समिति (बीवाईसी) ने गुरुवार को बलूचिस्तान के छात्र फहद लेहरी की हत्या की निंदा की और कहा कि बलूच पहचान को दबाने के लिए पाकिस्तान “मारो और फेंकों” की नीति अपनाए है और फहद की हत्या उसी नीति का परिणाम है.
बलूच यकजेहती समिति ने अपने बयान में कहा, “बलूचिस्तान के मस्तुंग निवासी छात्र फहाद को 4 मई को गायब कर दिया गया था और बुधवार को उसी क्षेत्र में गोलियों से छलनी उसकी लाश मिली. उसका एकमात्र ‘अपराध’ एक ऐसे क्षेत्र में बलूच युवक होना था, जहां पहचान को ही खतरा माना जाता है. फहाद को न तो अदालत में पेश किया गया और न ही उसे कानूनी मदद दी गई.”
यह पाकिस्तान की ‘मार डालो और फेंक दो’ नीति का हिस्सा है. इस नीति के तहत पाकिस्तान बलूच आवाजों को दबाने का प्रयास करता रहता है. छात्र, मजदूर, कलाकार और राजनीतिक कार्यकर्ता कोई भी यहां सुरक्षित नहीं है.
बीवाईसी ने अपने बयान में आगे कहा, “युवा बलूच पुरुषों को निशाना बनाने की यह रणनीति राज्य पर सवाल उठाने और बलूच समाज में गहरा डर पैदा करने के लिए है. फहाद लेहरी अब उन पीड़ितों की लंबी सूची में शामिल हो गए हैं, जिनकी ज़िंदगी बिना किसी सुनवाई के खत्म कर दी गई, जिनके परिवार राज्य की हिंसा की छाया में शोक मना रहे हैं.”
बीवाईसी ने एक अन्य बयान में कहा, “सोमवार की सुबह पाकिस्तान के फ्रंटियर कॉर्प्स (एफसी) ने अंधाधुंध गोलीबारी की. बलूचिस्तान के पंजगुर जिले के खुदाबदान कस्बे में अपने घर के बाहर सो रही 7 साल की लड़की रोकिया की गोली लगने से मौत हो गई. उसकी जान बचाई जा सकती थी अगर स्वास्थ्य व्यवस्था सही होती.”
यह कोई अकेली घटना नहीं है. राज्य बलों द्वारा अंधाधुंध हिंसा के ऐसे कृत्य बलूचिस्तान में बार-बार होने वाली वास्तविकता बन गए हैं. सुरक्षा बलों को मिल रही छूट और बुनियादी अधिकारों के व्यवस्थित हनन ने बलूचिस्तान में मानवीय संकट पैदा कर दिया है, जिस पर अंतर्राष्ट्रीय ध्यान देने की आवश्यकता है.
बयान में आगे कहा गया , “बलूचिस्तान के लोग अपनी आवाज,अपनी सच्चाई और अपनी सामूहिक स्मृति के माध्यम से इस क्रूरता का विरोध करना जारी रखेंगे. गोलियां शवों को दफना सकती हैं, लेकिन वे गरिमा और न्याय के साथ जीने के लिए दृढ़ संकल्पित लोगों की इच्छा को नहीं मिटा सकतीं.”
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पंकज/केआर