राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के स्थापना के 100 वर्ष पूरे होने के अवसर पर नागपुर के ऐतिहासिक रेशिमबाग मैदान में गुरुवार को विजयादशमी का भव्य आयोजन किया गया। यह समारोह न केवल संघ की वर्षों पुरानी परंपरा – शस्त्र पूजा और अनुशासित मार्च – का प्रतीक बना, बल्कि संगठन के शताब्दी वर्ष की ऐतिहासिक शुरुआत का गवाह भी बना। इस विशेष मौके पर पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुए। वहीं, केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी और महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस भी संघ के पारंपरिक गणवेश में मंच पर उपस्थित रहे।
सुबह करीब साढ़े सात बजे आरएसएस प्रमुख डॉ. मोहन भागवत ने शस्त्र पूजन के साथ कार्यक्रम की शुरुआत की। यह अनुष्ठान सदियों से बुराई पर अच्छाई की विजय और धर्म की रक्षा के संकल्प का प्रतीक माना जाता है। इसके बाद मंच पर और मैदान में विभिन्न सांस्कृतिक और शारीरिक गतिविधियों का प्रदर्शन हुआ। योगाभ्यास, घोष वादन, प्रात्यक्षिक और नियुद्ध जैसे कार्यक्रमों ने पूरे वातावरण को ऊर्जावान बना दिया। शताब्दी वर्ष की विशेषता के कारण इस बार आयोजन का पैमाना पहले से कई गुना बड़ा रहा। लगभग 21,000 स्वयंसेवकों ने पूर्ण गणवेश में भाग लिया, जो पिछले वर्षों की तुलना में एक ऐतिहासिक संख्या रही।
मुख्य अतिथि रामनाथ कोविंद कार्यक्रम से एक दिन पहले ही नागपुर पहुंचे थे। उन्होंने दीक्षाभूमि जाकर भी श्रद्धा व्यक्त की, जहां डॉ. भीमराव आंबेडकर ने 1956 में बौद्ध धर्म स्वीकार किया था। समारोह में संबोधन देते हुए कोविंद ने संघ की राष्ट्रहित में भूमिका की प्रशंसा की और कहा कि यह उत्सव समाज और देश निर्माण की दिशा में एक महत्वपूर्ण पड़ाव है।
आरएसएस ने अपने सौवें वर्ष पर देशभर में विविध कार्यक्रमों की योजना बनाई है। इनमें एक लाख से अधिक हिंदू सम्मेलन और सांस्कृतिक आयोजनों का आयोजन प्रमुख है। इन कार्यक्रमों की औपचारिक शुरुआत 2 अक्टूबर को नागपुर स्थित मुख्यालय में हुई थी, जहां संघ प्रमुख मोहन भागवत ने वार्षिक विजयादशमी भाषण दिया। गौरतलब है कि आरएसएस की स्थापना डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने 1925 में विजयादशमी के दिन ही की थी। इस तरह संघ ने अपने शताब्दी पर्व की शुरुआत उसी दिन और उसी परंपरा के साथ की, जिससे इसका जन्म जुड़ा हुआ है।
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