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विष्णु नागर का व्यंग्यः यह इक्कीसवीं सदी का चोर है, चोरों का चोर है, उनका सिरमौर है!

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यह चोर को चोर कहने का सही समय है, मगर यह ऐसा समय भी है जब चोर को चोर कहे जाने से डर नहीं लगता। वे दिन हवा हुए, जब चोर को कोई चोर कह देता था तो उसकी हवा निकल जाती थी। चलते-चलते अचानक वह तेजी से भागने लगता था और कहीं छुप जाता था। भय से रोने लगता था। ईश्वर से प्रार्थना करता था कि कहीं पुलिस आ न धमके। जब पुलिस आ धमकती थी तो वह घिघियाता था, चरण छूता था, अपने बीवी- बच्चों की बर्बादी का वास्ता देता था। गलती हो गई, हुजूर माफ कर दीजिए, पैर पकड़कर कहता था। जब इससे भी बात नहीं बनती थी तो जो थोड़ा-बहुत मालमत्ता वह लाता था, उसके फिफ्टी-फिफ्टी पर दोनों के बीच सौदा पट जाता था। इस तरह वह मामला वहीं रफा-दफा हो जाता था।

फिर भी चोर, समाज की नजर में, मोहल्लेवालों की नजर में और यहां तक कि पुलिसवालों की नजर में चोर ही रहता था। कहीं चोरी हुई नहीं कि सबसे पहले उसे धरा जाता था। थाने ले जाया जाता था। उसकी पिटाई की जाती थी। उसने चोरी नहीं की होती थी तो भी पुलिस उससे कुछ न कुछ वसूलकर उसे छोड़ती थी, चाहे इसके लिए चोर को अपने घर के बर्तन-भांडे बेचने पड़ जाएं!

अब चोर किसी से डरता नहीं। चोरी करने के बाद वही सबसे पहले थाने जाता है और इससे पहले कि जिसके यहां चोरी हुई है, वह एफआईआर करवाने जाए, चोर पहुंच जाता है और एक फर्जी एफआईआर दर्ज करवा आता है। नतीजा जिसके घर चोरी हुई है, उल्टा, वही फंस जाता है। बदनामी के डर से वह घर का बचाखुचा मालमत्ता भी पुलिस को समर्पित कर देता है। इस तरह देखें तो आज अपने ही नहीं, पुलिस के हितों की भी देखरेख चोर कर रहे हैं!

चोर, अब पुलिस को अपना दोस्त, अपना साथी, अपना हमदर्द मानते हैं। चोर अब पुलिस से डर कर भागते नहीं, छुपते नहीं। वे जानते हैं कि उनकी रक्षा के लिए पुलिस ही नहीं, यह पूरा तंत्र कदम-कदम पर तैनात है। दिल्ली उनके साथ खड़ी है। लखनऊ उनके साथ खड़ा है। भोपाल, जयपुर, मुंबई, गुवाहाटी, देहरादून, अहमदाबाद सब आवश्यकतानुसार उसके साथ हैं। इसके अलावा धर्म, जाति, गोत्र साथ खड़े हैं, क्षेत्रीयता साथ खड़ी है, पार्टी खड़ी है। मंत्री खड़ा है, एम पी-एमएलए खड़ा है, अधिकारियों का काफिला साथ खड़ा है। जो बैठा है, वह भी वक्त जरूरत खड़ा हो जाता है और सलाम बजाता है।

जिस चोर के अपराधों का रिकार्ड जितना पुराना और संगीन होता है, उतना ही मजबूत उसका रक्षा कवच होता है। उसे चोर कहना खतरे से खाली नहीं होता है। ऐसा कहने पर फौरन एक रिपोर्ट असम में, एक कर्नाटक में, एक उत्तराखंड में, एक महाराष्ट्र में, एक गुजरात में, एक मध्य प्रदेश, एक राजस्थान में, एक श्रीनगर में दर्ज करवाकर चोर कहने वाले की टें बुलवा दी जाती है। मानहानि के केस पर केस करवा दिए जाते हैं। ठोस सबूत के अभाव में आरोपी को जेल की हवा खाने भेज दिया जाता है। इधर चोर का मान और सम्मान बढ़ जाता है।

और चोर के एक नहीं, अनेक रूप हैं। चोर समय-समय पर वेश भी बदलता रहता है। चोरी का स्थान और वहां की संस्कृति चोर का वेश तय करती है। वह केसरिया बाना भी पहन सकता है और सिर पर हैट या पगड़ी या साफा भी धारण कर सकता है। कहीं वह साधु बना बैठा मिलता है तो कहीं योगी। कहीं वह इंजीनियर रूप में इंजीनियरों को इंजीनियरिंग का ज्ञान देते हुए मिलता है तो कहीं डाक्टर के चोगे में मरीज की तबियत का हाल लेते हुए दिखता है। कभी वह वायु सैनिक है तो कभी थल सेना का अफसर! कभी वह इतिहासकार और पुरातत्वविद् है और कभी वैज्ञानिक और समाजशास्त्री। कभी वह दाता है तो कभी निरा भिक्षुक। कभी वह चौथी फेल है, कभी वह एंटायर पोलिटिकल साइंस मे पोस्ट ग्रेजुएट है! वह मायावी है!

कहीं वह तोहफे बांटने का धंधा करते हुए पाया जाता है तो कहीं वह शिलान्यास करने का सर्कस करते हुए! कभी-कभी उसे दयालुता के प्रदर्शन का दौरा पड़ता है तो वह अपने काफिले को रोककर एंबुलेंस को रास्ता देने का ड्रामा करता है। कभी वह मां-मां करके टेसुए बहाता है तो कभी अपने को नान बायोलॉजिकल बताता है। कहा न, वह उस जमाने का चोर नहीं, जो आज से पचास, पचहत्तर, सौ साल पहले पाए जाते थे। जिनकी दाढ़ी होती थी और उसमें तिनका फंसा होता था ताकि लोग उसे आसानी से चिह्न सकें! वह इक्कीसवीं सदी का चोर है। चोरों का चोर है, उनका सिरमौर है।

कोई चोर उद्योगपति के वेश में मिलता है तो कोई हॉस्पिटल खोलकर बैठा है तो किसी ने एयरकंडीशन्ड स्कूल खोलकर नोट गिनने का धंधा चला रखा है। कोई बड़ी से बड़ी सरकारी जमीन मिट्टी के भाव खरीदने के धंधे में है। कोई सरकार में बैठा है तो कोई कॉरपोरेट के किसी ओहदे पर सरकारी माल हड़पने के लिए बैठाया गया है। कोई चोर ऐसा नहीं है, जिसके पास कोई पद न हो, आसन न हो, सिंहासन न हो, जिससे एमपी, एमएलए मिलने न आते हों। उसे ज़ुकाम हो जाता है तो उसकी मिजाजपुर्सी करने न आते हों!

ऐसा कोई चोर नहीं, जो नैतिकता पर उम्दा भाषण देना न जानता हो। जो सत्य और अहिंसा के महत्व को बुद्ध से लेकर गांधी जी तक और फिर वहां से माननीय तक ले आने का कौशल न जानता हो! जिसने दुनिया के सारे सुख और सौंदर्य का पान न किया हो और जिसकी मृत्यु होने पर उसका राजकीय सम्मान के साथ दाह संस्कार करने से सरकार ने कभी इनकार किया हो!हर चोर बुनियादी रूप से देशभक्त होता है क्योंकि वह जो भी करता है, देश की सीमा के अंदर रहकर करता है!

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