राम त्रिपाठी, नई दिल्ली: दिल्ली ज़ू में अलग-अलग प्रजाति के देसी-विदेशी पक्षी मौजूद हैं। इन दिनों की प्रजातियों के प्रजनन का दौर शुरू हो चुका है। ज़ू में पक्षियों की संख्या बढ़े इसके लिए ज़ू प्रशासन ने भी अपनी तरफ से तैयारियां की हैं। इसके लिए घोंसले बनाने से लेकर उनके खानपान का भी ध्यान दिया जा रहा है, ताकि सुरक्षित प्रजनन हो सके और नन्हें परिंदों का स्वागत हो सके। पंछियों के लिए बनाए गए घोंसलेज़ू के डायरेक्टर डॉ. संजीत कुमार ने बताया कि घोंसला बनाने में तोते को काफी मेहनत करनी पड़ती है। मादा तोता पेड़ की खोखली टहनी में ही घौंसला बनाती हैं। उनके लिए लकड़ी के कुछ घोंसले बनाए गए हैं। उसमें हरी घास रखी गई है। इसी प्रकार अन्य पंछियों के लिए भी घोंसले बनाए गए हैं ताकि वे आसानी से ब्रीडिंग कर सकें। इसमें सफलता मिल रही है। साथ ही कई बार पक्षियों की लापरवाही से अंडे टूट जाते हैं या उनकी ठीक से सिकाई नहीं हो पाती है। ऐसे में ज़ू प्रशासन ने पक्षियों के स्वस्थ बच्चों की पैदाइश के उद्देश्य से अंडों की सिकाई के लिए इनक्यूबेटर मशीन भी मंगवाई है। इसके अलावा दाने के साथ ही गर्मी को देखते हुए इसने लिए खीरे, तरबूज जैसे पानी की कमी को पूरा करने वाली चीजे खाने को दी जा रही है। जू में 36 प्रजाति के पक्षीज़ू में इस समय करीब 36 प्रजाति के पक्षी मौजूद हैं। उनमें से 9 प्रकार के पक्षी लगभग हर साल बच्चों को जन्म देते हैं। ऑस्ट्रेलिया का जेबरा फिंच ऐसा पक्षी है, जो हर तीसरे हफ्ते में प्रजनन करता है। आज इनकी संख्या 83 हो चुकी है। इसके अलावा कॉकटील, पेंटेड स्टॉक, रेड फाउल, चांदनी मुर्गी, भारतीय तोता (हीरामन तोता, रोज़ रिंग मकाउ) और काली मुर्गी भी शामिल हैं। 3 से 4 प्रजाति के पक्षी ऐसे हैं, जिनकी हर साल ब्रीडिंग नहीं होती है। वे कभी कभार अंडे देते जरूर हैं, मगर उनसे किसी बच्चे का जन्म नहीं होता है। शांत माहौल की तलाशज़ू के एक अधिकारी ने बताया कि पंक्षियों में से अनेक ऐसे हैं, जो ब्रीडिंग के लिए शांत और एकांत जगह पर ही घोंसले बनाते हैं। ऐसा वातावरण नहीं मिलने के कारण कई पक्षी ब्रीडिंग भी नहीं करते हैं।
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