नई दिल्ली : प्लास्टिक के वेस्ट प्रोडक्ट्स तो आपने कई देखे होंगे लेकिन गाजियाबाद में एक प्राइवेट स्कूल के स्टूडेंट्स ने इसका कमाल का यूज करने का तरीका निकाला है। स्टूडेंट्स ने सड़कों पर पड़े प्लास्टिक से पर्यावरण के अनुकूल ईंटे तैयार की हैं। इन इकोब्रिक्स का इस्तेमाल गार्डन के बेंच, गार्डन बेड, मॉड्यूलर फर्नीचर, प्ले स्ट्रक्चर, छोटी दीवारें बनाने में किया जा सकता है।
4 बच्चों से शुरू हुआ आइडिया
गाजियाबाद के सेठ आनंदराम जैपुरिया स्कूल के 4 बच्चों से यह आइडिया शुरू हुआ था। अब इस आइडिया से 20 बच्चों की एक टीम बन चुकी है। ये बच्चे समय समय पर क्लीन अप एंड कलेक्शन ड्राइव चलाते हैं। इसके तहत ये अपने आसपास के एरिया में बिखरे प्लास्टिक को इकठ्ठा करते हैं और फिर उनसे इकोब्रिक्स बनाकर स्ट्रक्चर बनाते हैं।
स्कूल का पूरा सपोर्ट
बच्चों के इस प्रयास में स्कूल का पूरा सपोर्ट मिल रहा है। स्कूल की डायरेक्टर और प्रिंसिपल शालिनी नांबियार कहती हैं कि अपने बच्चों के इस आइडिया के साथ वो खड़ी हैं और उनकी ज़रूरतों का न सिर्फ ध्यान रख रही हैं बल्कि इसको वो स्टार्टअप आइडिया के तौर पर देखते हुए Ecobricks NCR के लिए फंड जुटाने की दिशा में भी काम कर रही हैं।
देश में हर साल 9.3 मिलियन टन प्लास्टिक का कचरा निकलता है। इसमें से करीब 12 प्रतिशत ही रिसाइकिल हो पाता है। वहीं, 20 प्रतिशत जला दिया जाता है। हम अधिकतर कचरे का निस्तारण सही तरीके से नहीं कर पाते। ऐसे में बच्चों की प्लास्टिक के साथ ये पहल प्रशंसनीय है।
4 बच्चों से शुरू हुआ आइडिया
गाजियाबाद के सेठ आनंदराम जैपुरिया स्कूल के 4 बच्चों से यह आइडिया शुरू हुआ था। अब इस आइडिया से 20 बच्चों की एक टीम बन चुकी है। ये बच्चे समय समय पर क्लीन अप एंड कलेक्शन ड्राइव चलाते हैं। इसके तहत ये अपने आसपास के एरिया में बिखरे प्लास्टिक को इकठ्ठा करते हैं और फिर उनसे इकोब्रिक्स बनाकर स्ट्रक्चर बनाते हैं।
स्कूल का पूरा सपोर्ट
बच्चों के इस प्रयास में स्कूल का पूरा सपोर्ट मिल रहा है। स्कूल की डायरेक्टर और प्रिंसिपल शालिनी नांबियार कहती हैं कि अपने बच्चों के इस आइडिया के साथ वो खड़ी हैं और उनकी ज़रूरतों का न सिर्फ ध्यान रख रही हैं बल्कि इसको वो स्टार्टअप आइडिया के तौर पर देखते हुए Ecobricks NCR के लिए फंड जुटाने की दिशा में भी काम कर रही हैं।
देश में हर साल 9.3 मिलियन टन प्लास्टिक का कचरा निकलता है। इसमें से करीब 12 प्रतिशत ही रिसाइकिल हो पाता है। वहीं, 20 प्रतिशत जला दिया जाता है। हम अधिकतर कचरे का निस्तारण सही तरीके से नहीं कर पाते। ऐसे में बच्चों की प्लास्टिक के साथ ये पहल प्रशंसनीय है।
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