नई दिल्ली: यूक्रेनी ड्रोन हमलों के कारण रूस के तेल उत्पादन में कटौती की आशंका है। इसका भारत पर सीधा असर पड़ सकता है। भारत रूस से बड़ी मात्रा में रियायती दरों पर कच्चा तेल (क्रूड) आयात करता है। अमेरिका भारत समेत पूरी दुनिया पर रूसी तेल को न खरीदने के लिए दबाव बनाए हुए है। अब रूस को मजबूरन अपनी तेल सप्लाई को घटाना पड़ सकता है। रूस की तेल पाइपलाइन कंपनी ट्रांसनेफ्ट ने तेल उत्पादकों को चेतावनी दी है। कहा है कि उन्हें उत्पादन में कटौती करनी पड़ सकती है। यह चेतावनी यूक्रेन की ओर से महत्वपूर्ण निर्यात बंदरगाहों और रिफाइनरियों पर ड्रोन हमलों के बाद आई है। न्यूज एजेंसी रायटर्स ने तीन उद्योग सूत्रों के हवाले से मंगलवार को यह जानकारी दी।
यूक्रेन रूस के ऊर्जा ठिकानों पर हमले तेज कर रहा है। इसका मकसद यूक्रेन युद्ध में रूस की सैन्य क्षमता को कमजोर करना और क्रेमलिन के रेवेन्यू को कम करना है। शांति वार्ता के जरिए संघर्ष को खत्म करने की कोशिशें फिलहाल रुकी हुई हैं। तेल और गैस से होने वाली आय रूस के कुल संघीय बजट का बड़ा हिस्सा है। पिछले एक दशक में यह आय एक तिहाई से आधी तक रही है। इस वजह से यह क्षेत्र सरकार के लिए सबसे महत्वपूर्ण वित्तीय स्रोत है।
10 रिफाइनरियों पर हमला
यूक्रेनी सैन्य अधिकारियों और रूसी उद्योग सूत्रों के अनुसार, यूक्रेनी ड्रोन ने कम से कम 10 रिफाइनरियों पर हमला किया है। इससे रूस की रिफाइनिंग क्षमता में लगभग पांचवां हिस्सा कम हो गया है। इसके अलावा, बाल्टिक सागर के प्रमुख बंदरगाहों उस्त-लुगा और प्रिमोर्स्क को भी नुकसान पहुंचा है। रूसी अधिकारियों ने सार्वजनिक रूप से नुकसान की सीमा या उत्पादन और निर्यात पर इसके प्रभाव पर कोई टिप्पणी नहीं की है। हालांकि, ट्रांसनेफ्ट ने हाल के दिनों में तेल कंपनियों की पाइपलाइन प्रणाली में तेल भंडारण करने की क्षमता को सीमित कर दिया है। यह कंपनी रूस में निकाले जाने वाले तेल का 80% से ज्यादा का प्रबंधन करती है। यह जानकारी रूसी तेल कंपनियों से जुड़े दो उद्योग सूत्रों ने दी है। ट्रांसनेफ्ट ने उत्पादकों को यह भी चेतावनी दी है कि अगर उसके बुनियादी ढांचे को और नुकसान होता है तो उसे कम तेल स्वीकार करना पड़ सकता है।
उत्पादन में कटौती करने को मजबूर
इन हमलों के कारण रूस को आखिरकार उत्पादन में कटौती करने के लिए मजबूर होना पड़ सकता है। रूस का कुल ग्लोबल ऑयल प्रोडक्शन में 9% हिस्सा है। पश्चिमी देशों ने यूक्रेन पर आक्रमण के कारण रूस पर कई प्रतिबंध लगाए हैं। इन प्रतिबंधों में तेल और गैस क्षेत्र पर विशेष ध्यान दिया गया है। लेकिन, रूस ने ज्यादातर तेल निर्यात को एशिया की ओर मोड़ दिया है। भारत और चीन इसके प्रमुख खरीदार हैं।
पिछले हफ्ते यूक्रेनी ड्रोन ने 2022 में युद्ध शुरू होने के बाद पहली बार रूस के सबसे बड़े तेल बंदरगाह प्रिमोर्स्क पर हमला किया। इससे वहां का कामकाज अस्थायी रूप से बंद हो गया। प्रिमोर्स्क में रोजाना 10 लाख बैरल से ज्यादा तेल निर्यात करने की क्षमता है। यह रूस के कुल तेल उत्पादन का 10% से ज्यादा है। यूक्रेन के राष्ट्रपति व्लोदिमिर जेलेंस्की ने कहा कि हमलों से काफी नुकसान हुआ है। सऊदी अरब के उलट रूस के पास तेल का बड़ा भंडार नहीं है। अमेरिकी बैंक जेपी मॉर्गन ने एक नोट में कहा कि सीमित भंडारण क्षमता के कारण रूस की तेल उत्पादन बढ़ाने की क्षमता अब खतरे में है।
भारत पर क्या हो सकते हैं असर?भारत रूस से कच्चा तेल आयात करने वाला सबसे बड़ा ग्राहक बन गया है। यूक्रेन युद्ध के बाद से ही भारत रूस से रियायती दरों पर बड़ी मात्रा में तेल खरीद रहा है। रूस के तेल उत्पादन में कटौती का भारत पर कई तरह से असर पड़ सकता है।
अगर रूस अपनी उत्पादन क्षमता में कटौती करता है तो भारत को कम मात्रा में तेल मिलेगा। इससे भारत को अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए अन्य देशों से ज्यादा कीमत पर तेल खरीदना पड़ सकता है।
रूस दुनिया का एक प्रमुख तेल निर्यातक है। उसके उत्पादन में कटौती से ग्लोबल तेल की सप्लाई कम होगी। इससे तेल की कीमतें बढ़ सकती हैं। भारत को महंगा तेल खरीदना पड़ेगा। इससे पेट्रोल, डीजल और अन्य पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतों में बढ़ोतरी हो सकती है।
यूक्रेन रूस के ऊर्जा ठिकानों पर हमले तेज कर रहा है। इसका मकसद यूक्रेन युद्ध में रूस की सैन्य क्षमता को कमजोर करना और क्रेमलिन के रेवेन्यू को कम करना है। शांति वार्ता के जरिए संघर्ष को खत्म करने की कोशिशें फिलहाल रुकी हुई हैं। तेल और गैस से होने वाली आय रूस के कुल संघीय बजट का बड़ा हिस्सा है। पिछले एक दशक में यह आय एक तिहाई से आधी तक रही है। इस वजह से यह क्षेत्र सरकार के लिए सबसे महत्वपूर्ण वित्तीय स्रोत है।
10 रिफाइनरियों पर हमला
यूक्रेनी सैन्य अधिकारियों और रूसी उद्योग सूत्रों के अनुसार, यूक्रेनी ड्रोन ने कम से कम 10 रिफाइनरियों पर हमला किया है। इससे रूस की रिफाइनिंग क्षमता में लगभग पांचवां हिस्सा कम हो गया है। इसके अलावा, बाल्टिक सागर के प्रमुख बंदरगाहों उस्त-लुगा और प्रिमोर्स्क को भी नुकसान पहुंचा है। रूसी अधिकारियों ने सार्वजनिक रूप से नुकसान की सीमा या उत्पादन और निर्यात पर इसके प्रभाव पर कोई टिप्पणी नहीं की है। हालांकि, ट्रांसनेफ्ट ने हाल के दिनों में तेल कंपनियों की पाइपलाइन प्रणाली में तेल भंडारण करने की क्षमता को सीमित कर दिया है। यह कंपनी रूस में निकाले जाने वाले तेल का 80% से ज्यादा का प्रबंधन करती है। यह जानकारी रूसी तेल कंपनियों से जुड़े दो उद्योग सूत्रों ने दी है। ट्रांसनेफ्ट ने उत्पादकों को यह भी चेतावनी दी है कि अगर उसके बुनियादी ढांचे को और नुकसान होता है तो उसे कम तेल स्वीकार करना पड़ सकता है।
उत्पादन में कटौती करने को मजबूर
इन हमलों के कारण रूस को आखिरकार उत्पादन में कटौती करने के लिए मजबूर होना पड़ सकता है। रूस का कुल ग्लोबल ऑयल प्रोडक्शन में 9% हिस्सा है। पश्चिमी देशों ने यूक्रेन पर आक्रमण के कारण रूस पर कई प्रतिबंध लगाए हैं। इन प्रतिबंधों में तेल और गैस क्षेत्र पर विशेष ध्यान दिया गया है। लेकिन, रूस ने ज्यादातर तेल निर्यात को एशिया की ओर मोड़ दिया है। भारत और चीन इसके प्रमुख खरीदार हैं।
पिछले हफ्ते यूक्रेनी ड्रोन ने 2022 में युद्ध शुरू होने के बाद पहली बार रूस के सबसे बड़े तेल बंदरगाह प्रिमोर्स्क पर हमला किया। इससे वहां का कामकाज अस्थायी रूप से बंद हो गया। प्रिमोर्स्क में रोजाना 10 लाख बैरल से ज्यादा तेल निर्यात करने की क्षमता है। यह रूस के कुल तेल उत्पादन का 10% से ज्यादा है। यूक्रेन के राष्ट्रपति व्लोदिमिर जेलेंस्की ने कहा कि हमलों से काफी नुकसान हुआ है। सऊदी अरब के उलट रूस के पास तेल का बड़ा भंडार नहीं है। अमेरिकी बैंक जेपी मॉर्गन ने एक नोट में कहा कि सीमित भंडारण क्षमता के कारण रूस की तेल उत्पादन बढ़ाने की क्षमता अब खतरे में है।
भारत पर क्या हो सकते हैं असर?भारत रूस से कच्चा तेल आयात करने वाला सबसे बड़ा ग्राहक बन गया है। यूक्रेन युद्ध के बाद से ही भारत रूस से रियायती दरों पर बड़ी मात्रा में तेल खरीद रहा है। रूस के तेल उत्पादन में कटौती का भारत पर कई तरह से असर पड़ सकता है।
अगर रूस अपनी उत्पादन क्षमता में कटौती करता है तो भारत को कम मात्रा में तेल मिलेगा। इससे भारत को अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए अन्य देशों से ज्यादा कीमत पर तेल खरीदना पड़ सकता है।
रूस दुनिया का एक प्रमुख तेल निर्यातक है। उसके उत्पादन में कटौती से ग्लोबल तेल की सप्लाई कम होगी। इससे तेल की कीमतें बढ़ सकती हैं। भारत को महंगा तेल खरीदना पड़ेगा। इससे पेट्रोल, डीजल और अन्य पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतों में बढ़ोतरी हो सकती है।
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