नई दिल्ली: हाल के दिनों में स्लीपर बसों में आग की खबरें बढ़ी है। मंगलवार को राजस्थान के मनोहरपुर में एक डबल डेकर बस हाईटेंशन लाइन की चपेट में आ गई। बस की छत पर नियमों के खिलाफ गैस सिलिंडर और अन्य सामान रखा था, जिसकी वजह से हादसा हुआ। दिल्ली ट्रांसपोर्ट विभाग के पूर्व डिप्टी कमिश्नर और रोड सेफ्टी विशेषज्ञ अनिल छिकारा ने कहा, बस में अधिक लोड भरने से उसका टेंपरेचर बढ़ने से शॉर्ट सर्किट हो जाना, लोकल बस बॉडी बिल्डरों द्वारा बसों में सब-स्टैंडर्ड माल इस्तेमाल करना, बसों और एसी की सही मेंटिनेंस ना होना और क्षमता से अधिक लोगों को बसों में भरना आग के प्रमुख कारण है। बसों में एक बड़ी कंपनी वोल्वो द्वारा इमरजेंसी गेट की जगह लंबा शीश लगाया गया। इसकी देखादेखी लोकल स्तर पर बस बॉडी बनाने वाले बिल्डरों ने भी बसों को ऐसे ही बनाना शुरू कर दिया, जिसमें इमरजेंसी गेट बनाए ही नहीं जा रहे।
'हादसों के पीछे गलत डिजाइन जिम्मेदार'यूपी के पूर्व डीजीपी और नोएडा इंटरनैशनल यूनिवर्सिटी के चांसलर प्रो. विक्रम सिंह ने हादसों को लेकर सीधे तौर पर इनके डिजाइन का गलत होना बताया। बड़ी वजहों में फाल्टी डिजाइन, बस के इंटीरियर में ज्वलनशील सिल्क, फोम और रेक्सीन का इस्तेमाल, कम पढ़े-लिखों और ट्रैफिक नियम ना जानने वालों को भी हेवी ड्राइविंग लाइसेंस जारी करना और कई बार प्रशीकरी चलाना बताया।
'यात्री बसों में माल ढुलाई जान पर बन आती है'ऑल इंडिया मोटर एंड गूडस ट्रांसपोर्ट असोसिएशन के अध्यक्ष राजेंद्र कपूर ने इसके पीछे बड़ी वजह यात्री बसों में माल ढोना बताया। जिसकी कोई जांच नही होती। ट्रकों में माल जाता है तो उसके पूरे कागज चेक किए जाते है। माल देखा जाता है कि कोई ज्वलनशील पदार्थ तो नहीं। जैसलमेर बस हादसे में पटाखे थे, आंध्र बस हादसे में मोबाइल फोन और इस बार के हादसे में गैस सिलिंडर थे। सरकार को इस पर जल्द से जल्द कड़ा रुख अपनाना पड़ेगा।
'डिजाइन मोडिफाई करने की वजह से बढ़ा खतरा'रिटायर्ड मोटर लाइसेंसिंग ऑफिसर नंद गोपाल ने कहा, बस वाले बस को पास कराने के लिए पहले अलग से बस को डिजाइन कराते है। पास हो जाने पर सिटिंग कैपेसिटी बढ़ाते हुए इमरजेंसी एग्जिट गेटों तक में सीटों को लगवा देते है। ऐसे में हादसे के समय इमरजेंसी गेट नहीं होता। गाड़ियों में ऑटोमैटिक सिस्टम कई बार आग लगने पर काम करना ही बंद कर देते हैं।
'बीएस-6 बसों में शॉर्ट सर्किट से हादसे अधिक'दिल्ली इंटरस्टेट बस ऑपरेटर्स संघ के जनरल सेक्रेटरी श्यामलाल गोला ने कहा, अधिकतर बसे बीएस-6 है। इनमें शॉर्ट सर्किट की समस्या सबसे अधिक आ रही है। जब सब कुछ नियमों के अनुसार है तो बस मालिक की गलती कैसे? हां, अगर कही नियमों के खिलाफ कार्य किया जा रहा है तो वह बस पास कैसे हो गई? इस पर भी सरकार को ध्यान देना चाहिए।
15 दिन में 5 घटनाएं, 50 से अधिक लोगों की जानें 14 अक्टूबरः जैसलमेर-जोधपुर हाईवे पर स्लीपर बस में आग। 26 यात्रियों की मौत।
24 अक्टूबरः आंध प्रदेश में बस बाइक से टकराकर आग का गोला बनी। 20 लोग जिंदा जले।
25 अक्टूबरः मध्य प्रदेश में एक बस में आग। सभी किसी तरह सुरक्षित बचे।
26 अक्टूबरः आगरा ऐक्सप्रेस-वे पर चलती बस का टायर फटने से आग लगी। करीब 70 लोगों की जान बची।
28 अक्टूबरः राजस्थान के मनोहरपुर में एक बस हाईटेंशन लाइन की चपेट में आ गई, इससे बस में आग लग गई और दो की जान चली गई।
तुरंत उठाने होंगे जरूरी कदम
'हादसों के पीछे गलत डिजाइन जिम्मेदार'यूपी के पूर्व डीजीपी और नोएडा इंटरनैशनल यूनिवर्सिटी के चांसलर प्रो. विक्रम सिंह ने हादसों को लेकर सीधे तौर पर इनके डिजाइन का गलत होना बताया। बड़ी वजहों में फाल्टी डिजाइन, बस के इंटीरियर में ज्वलनशील सिल्क, फोम और रेक्सीन का इस्तेमाल, कम पढ़े-लिखों और ट्रैफिक नियम ना जानने वालों को भी हेवी ड्राइविंग लाइसेंस जारी करना और कई बार प्रशीकरी चलाना बताया।
'यात्री बसों में माल ढुलाई जान पर बन आती है'ऑल इंडिया मोटर एंड गूडस ट्रांसपोर्ट असोसिएशन के अध्यक्ष राजेंद्र कपूर ने इसके पीछे बड़ी वजह यात्री बसों में माल ढोना बताया। जिसकी कोई जांच नही होती। ट्रकों में माल जाता है तो उसके पूरे कागज चेक किए जाते है। माल देखा जाता है कि कोई ज्वलनशील पदार्थ तो नहीं। जैसलमेर बस हादसे में पटाखे थे, आंध्र बस हादसे में मोबाइल फोन और इस बार के हादसे में गैस सिलिंडर थे। सरकार को इस पर जल्द से जल्द कड़ा रुख अपनाना पड़ेगा।
'डिजाइन मोडिफाई करने की वजह से बढ़ा खतरा'रिटायर्ड मोटर लाइसेंसिंग ऑफिसर नंद गोपाल ने कहा, बस वाले बस को पास कराने के लिए पहले अलग से बस को डिजाइन कराते है। पास हो जाने पर सिटिंग कैपेसिटी बढ़ाते हुए इमरजेंसी एग्जिट गेटों तक में सीटों को लगवा देते है। ऐसे में हादसे के समय इमरजेंसी गेट नहीं होता। गाड़ियों में ऑटोमैटिक सिस्टम कई बार आग लगने पर काम करना ही बंद कर देते हैं।
'बीएस-6 बसों में शॉर्ट सर्किट से हादसे अधिक'दिल्ली इंटरस्टेट बस ऑपरेटर्स संघ के जनरल सेक्रेटरी श्यामलाल गोला ने कहा, अधिकतर बसे बीएस-6 है। इनमें शॉर्ट सर्किट की समस्या सबसे अधिक आ रही है। जब सब कुछ नियमों के अनुसार है तो बस मालिक की गलती कैसे? हां, अगर कही नियमों के खिलाफ कार्य किया जा रहा है तो वह बस पास कैसे हो गई? इस पर भी सरकार को ध्यान देना चाहिए।
15 दिन में 5 घटनाएं, 50 से अधिक लोगों की जानें 14 अक्टूबरः जैसलमेर-जोधपुर हाईवे पर स्लीपर बस में आग। 26 यात्रियों की मौत।
24 अक्टूबरः आंध प्रदेश में बस बाइक से टकराकर आग का गोला बनी। 20 लोग जिंदा जले।
25 अक्टूबरः मध्य प्रदेश में एक बस में आग। सभी किसी तरह सुरक्षित बचे।
26 अक्टूबरः आगरा ऐक्सप्रेस-वे पर चलती बस का टायर फटने से आग लगी। करीब 70 लोगों की जान बची।
28 अक्टूबरः राजस्थान के मनोहरपुर में एक बस हाईटेंशन लाइन की चपेट में आ गई, इससे बस में आग लग गई और दो की जान चली गई।
तुरंत उठाने होंगे जरूरी कदम
- यात्री बसों में सामान की ढुलाई तुरंत बंद हो।
- हर छह महीने में बस और उसकी डिजाइन की जांच हो।
- बस में बीच में और पीछे कम से कम दो इमरजेंसी गेट हो।
- बस के गेट मैनुअली ऑपरेट होने वाले हो।
- हर शीशे के पास इमरजेंसी में तोड़ने के लिए हथौड़ा हो।
- आग बुझाने वाले सिलिंडरों में गैस पूरी हो।
- समय-समय पर बस ड्राइवरों की ट्रेनिंग हो।
- बसो में ज्वलनशील सामान का इस्तेमाल कम से कम हो।
- ट्रांसपोर्ट विभाग और पुलिस को सख्त कदम उठाने चाहिए।
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