नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को पूछा कि जब राष्ट्रपति स्वयं यह जानना चाहती है कि राज्य विधानसभाओं से पारित विधेयकों पर कार्रवाई के लिए राष्ट्रपति और राज्यपाल पर निश्चित समयसीमा (fixed timelines) लागू की जा सकती है या नहीं, तो इसमें आपत्ति क्या है? सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की ओर से अनुच्छेद 143 (1) के तहत भेजे गए रेफरेंस पर सुनवाई में यह सवाल उठाया।
उसका उद्देश्य केवल कानून पर राय देना है
चीफ जस्टिस बी. आर. गवई की अगुआई वाली संवैधानिक बेंच ने स्पष्ट किया कि अदालत इस मामले को परामर्शी अधिकार क्षेत्र में देख रही है, न कि तमिलनाडु राज्यपाल मामले पर दिए गए फैसले की अपील के रूप में। अदालत ने कहा कि उसका उद्देश्य केवल कानून पर राय देना है, न कि पहले से दिए गए फैसले को निरस्त करना। चीफ जस्टिस ने कहा कि हमें एक भी उदाहरण दिखाइए जहां डिवीजन बेंच के निर्णय पर रेफरेंस अस्वीकार्य हो। हम तमिलनाडु के फैसले की सही-गलत नहीं देख रहे हैं।
राष्ट्रपति का रेफरेंस
यह रेफरेंस राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने मई 2025 में संविधान के अनुच्छेद 143 (1) के तहत किया था। राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट से राय मांगी कि क्या कोर्ट के आदेशों द्वारा राष्ट्रपति और राज्यपाल को विधेयकों पर निर्णय लेने की समयसीमा तय की जा सकती है। इस रेफरेंस में कुल 14 सवाल उठाए गए है, जिनमें सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न समयसीमा निर्धारित करने को लेकर ही है।
राज्यों की आपत्ति
केरल सरकार की ओर से के. के. वेणुगोपाल ने दलील दी कि मुद्दा अब अनिर्णीत नहीं रहा क्योकि तमिलनाडु बनाम राज्यपाल मामले में अदालत पहले ही स्पष्ट फैसला दे चुकी है। सरकार को पुनर्विचार याचिका दाखिल करनी चाहिए थी। वही, तमिलनाडु सरकार की ओर से अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि अनुच्छेद 143 पुराने फैसले को बदलने का माध्यम नहीं हो सकता।
केंद्र की दलील
केंद्र ने दलील दी कि राज्यपाल और राष्ट्रपति के लिए समयसीमा तय करना संविधान की मूल संरचना से छेड़छाड़ कर संवैधानिक अव्यवस्था पैदा करेगा। यह पूरा विवाद दरअसल तमिलनाडु राज्य बनाम राज्यपाल मामले से जुड़ा है।
उसका उद्देश्य केवल कानून पर राय देना है
चीफ जस्टिस बी. आर. गवई की अगुआई वाली संवैधानिक बेंच ने स्पष्ट किया कि अदालत इस मामले को परामर्शी अधिकार क्षेत्र में देख रही है, न कि तमिलनाडु राज्यपाल मामले पर दिए गए फैसले की अपील के रूप में। अदालत ने कहा कि उसका उद्देश्य केवल कानून पर राय देना है, न कि पहले से दिए गए फैसले को निरस्त करना। चीफ जस्टिस ने कहा कि हमें एक भी उदाहरण दिखाइए जहां डिवीजन बेंच के निर्णय पर रेफरेंस अस्वीकार्य हो। हम तमिलनाडु के फैसले की सही-गलत नहीं देख रहे हैं।
राष्ट्रपति का रेफरेंस
यह रेफरेंस राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने मई 2025 में संविधान के अनुच्छेद 143 (1) के तहत किया था। राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट से राय मांगी कि क्या कोर्ट के आदेशों द्वारा राष्ट्रपति और राज्यपाल को विधेयकों पर निर्णय लेने की समयसीमा तय की जा सकती है। इस रेफरेंस में कुल 14 सवाल उठाए गए है, जिनमें सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न समयसीमा निर्धारित करने को लेकर ही है।
राज्यों की आपत्ति
केरल सरकार की ओर से के. के. वेणुगोपाल ने दलील दी कि मुद्दा अब अनिर्णीत नहीं रहा क्योकि तमिलनाडु बनाम राज्यपाल मामले में अदालत पहले ही स्पष्ट फैसला दे चुकी है। सरकार को पुनर्विचार याचिका दाखिल करनी चाहिए थी। वही, तमिलनाडु सरकार की ओर से अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि अनुच्छेद 143 पुराने फैसले को बदलने का माध्यम नहीं हो सकता।
केंद्र की दलील
केंद्र ने दलील दी कि राज्यपाल और राष्ट्रपति के लिए समयसीमा तय करना संविधान की मूल संरचना से छेड़छाड़ कर संवैधानिक अव्यवस्था पैदा करेगा। यह पूरा विवाद दरअसल तमिलनाडु राज्य बनाम राज्यपाल मामले से जुड़ा है।
You may also like
इजराइल के हमले में हमास कमांडर शमाला और आतंकी नज्जर मारे गए
फरीदाबाद : पुलिस मुठभेड़ में रोहतक का इनामी बदमाश गिरफ्तार
फरीदाबाद : 91 हजार से घटकर 79 हजार क्यूसेक पर पहुंचा यमुना का पानी
पुणे में मूसलाधार बारिश से कई इलाकों में जलभराव,उपमुख्यमंत्री अजीत पवार ने किया दौरा,प्रशासन अलर्ट
iPhone 17 Series लॉन्च डेट सामने आई, कीमत जानकर आप भी रह जाएंगे दंग