नई दिल्ली: 13 अक्टूबर, 1935 का वह दिन, जब बाबा साहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर ने हिंदू धर्म का त्याग करने का ऐलान कर दिया। महाराष्ट्र के नासिक में एक छोटे से शहर येओला में एक सभा को संबोधित करते हुए उन्होंने घोषणा की, मैं खुद को हिंदू कहने वाले व्यक्ति के रूप में नहीं मरूंगा! उन्होंने अपने समर्थकों के बीच कहा कि मैं हिंदू धर्म का त्याग करने जा रहा हूं। आंबेडकर का कहना था, मुझे वह धर्म पसंद है जो स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व सिखाता है, क्योंकि एक व्यक्ति के विकास के लिए तीन चीजों की आवश्यकता होती है जो करुणा, समानता और स्वतंत्रता है। धर्म मनुष्य के लिए है न कि मनुष्य धर्म के लिए। उनके मतानुसार जाति प्रथा के चलते हिंदू धर्म में इन तीनों का ही अभाव था। बाद में आंबेडकर ने 3.65 लाख समर्थकों के साथ बौद्ध धर्म अपना लिया। आंबेडकर जयंती पर जानते हैं उनकी कहानी। जब आंबेडकर ने मनुस्मृति को आग के हवाले कर दिया25 दिसंबर, 1927 को बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर ने मनुस्मृति की प्रतियों को आग के हवाले कर दिया और उसकी आंच तापने लगे। उनके साथ उस समय महाराष्ट्र के एक चितपावन ब्राह्मण गंगाधर नीलकंठ सहस्रबुद्धे नाम के एक सामाजिक कार्यकर्ता भी थे, जिन्होंने भी मनुस्मृति की प्रतियां जलाईं। आंबेडकर का यह मानना था कि मनुस्मृति ही वह ग्रंथ है, जिसने भारत में जाति प्रथा की शुरुआत की। महाड सत्याग्रह के दौरान गंगाधर ने बाबासाहेब आंबेडकर की मदद भी की थी। पाकिस्तान में ये न होता तो आंबेडकर की सोच कुछ और होतीआंबेडकर के इस्लाम न अपनाने के कई कारणों में एक कारण यह भी था कि आजादी के बाद पाकिस्तान में बड़े पैमाने पर दलितों का धर्म परिवर्तन हो रहा था। आंबेडकर उन्हें इस्लाम धर्म न अपनाने की सलाह दे रहे थे। वे मानते थे कि वहां भी उनको बराबरी का हक नहीं मिल पाएगा। आंबेडकर ने स्पष्ट रूप से कहा था कि देश का भाग्य तब बदलेगा जब हिंदू और इस्लाम धर्म के दलित ऊंची जाति की राजनीति से मुक्त हो पाएंगे। जैसे हिंदू धर्म में ब्राह्मणवादी राजनीति का बोलबाला था, वैसे ही इस्लाम की राजनीति भी ऊंची जातियों तक सीमित थी। आंबेडकर इस्लाम में महिलाओं की स्थिति को लेकर चिंतित थे। वो बहु विवाह प्रथा के खिलाफ थे। गांधीजी ने कहा-कान में गरम सीसा डालने वाले धर्म को नहीं मानूंगाजब आंबेडकर ने मनुस्मृति जलाया तो उसके बाद से पूरे देश में इस किताब को जलाने का सिलसिला चल पड़ा। इससे अख़बारों में देश और समाज पर मनुस्मृति के प्रभाव जैसे मुद्दों पर चर्चा शुरू हो गई। गांधीजी ने अलीगढ़ विश्वविद्यालय के संस्कृत के प्रोफेसर हबीबुर रहमान को इस बारे में एक पत्र लिखा, जिसमें कहा गया है कि हिंदू धर्म की खासियत यह है कि उसमें विचारों की स्वतंत्रता है।... वेद पाठ सुननेवाले शूद्र के कान में गरम सीसा डालने की बात अगर ऐतिहासिक मानी जाए , तो मैं उस धर्म को मानने के लिए हरगिज तैयार नहीं हूं और ऐसे असंख्य हिंदू हैं, जो उसे धर्म वचन नहीं मानते हैं। हिदंूधर्म के लिए एक कसौटी रखी गई है, जिसे एक बालक भी समझ सकता है। जो सत्य और अहिंसा के विपरीत है , वह भी धर्म नहीं हो सकता। आंबेडकर की समाज सुधारक की छवि से टेंशन में थी कांग्रेसआंबेडकर की समाज सुधारक वाली छवि कांग्रेस के लिए चिंता का कारण थी। यही वजह है कि पार्टी ने उन्हें संविधान सभा से दूर रखने की योजना बनाई। संविधान सभा में भेजे गए शुरुआती 296 सदस्यों में आंबेडकर नहीं थे। आंबेडकर सदस्य बनने के लिए बॉम्बे के अनुसूचित जाति संघ का साथ भी नहीं ले पाए। उस समय के बॉम्बे के मुख्यमंत्री बीजी खेर ने पटेल के कहने पर सुनिश्चित किया कि आंबेडकर 296 सदस्यीय निकाय के लिए न चुने जाएं। जब पाकिस्तान जाने वाले एक हिंदू का मिला सहाराआंबेडकर जब बॉम्बे में असफल रहे तो उनकी मदद को बंगाल के दलित नेता जोगेंद्रनाथ मंडल सामने आए। उन्होंने मुस्लिम लीग की मदद से आंबेडकर को संविधान सभा में पहुंचाया। यही मंडल बाद में पाकिस्तान के पहले कानून मंत्री बने। जब आंबेडकर पाकिस्तान की संविधान सभा के सदस्य बनेजिन जिलों के वोटों से बीआर आंबेडकर संविधान सभा में पहुंचे थे वो हिंदु बहुल होने के बावजूद पूर्वी पाकिस्तान का हिस्सा बन गए। नतीजतन आंबेडकर पाकिस्तान की संविधान सभा के सदस्य बन गए। भारतीय संविधान सभा की उनकी सदस्यता रद्द कर दी गई। पाकिस्तान बनने के बाद भारत में रहे बंगाल के हिस्सों में से दोबारा संविधान सभा के सदस्य चुने गए। जब आंबेडकर ने धमकी दी, संविधान स्वीकार नहीं करूंगाजब कहीं से उम्मीद नहीं बची तो आंबेडकर ने धमकी दी कि वो संविधान को स्वीकार नहीं करेंगे और इसे राजनीतिक मुद्दा बनाएंगे। माना जाता है कि इसके बाद ही कांग्रेस आलाकमान ने उन्हें जगह देने का फैसला किया। इसी दौरान बॉम्बे के एक सदस्य एमआर जयकर ने संविधान सभा में अपना पद से इस्तीफा दे दिया। तब कांग्रेस ने फैसला किया कि एमआर जयकर की खाली जगह आंबेडकर लेंगे। इस वजह से आंबेडकर ने दे दिया था नेहरू कैबिनेट से इस्तीफाआजादी से पहले जब जवाहरलाल के नेतृत्व में पहली अंतरिम सरकार बनी थी तो आंबेडकर नेहरू कैबिनेट में कानून मंत्री थे। हालांकि, अनुसूचित जातियों और हिंदू कोड बिल को लेकर आंबेडकर कांग्रेस की नीतियों से निराश थे। 11 अप्रैल, 1947 को आंबेडकर ने हिंदू कोड विधेयक, 1947 को सदन में पेश किया था लेकिन बिना किसी चर्चा के गिर गया। आंबेडकर ने कहा कि प्रधानमंत्री के आश्वासन के बावजूद हिंदू कोड बिल संसद में गिरा दिया गया। इन्हीं मतभेदों के चलते आंबेडकर को 27 सितंबर, 1951 को अंतरिम सरकार से इस्तीफा देना पड़ा था। उन्होंने शेड्यूल्ड कास्ट्स फेडरेशन नामक संगठन बनाया था।
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