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Waqf Amendment Act Case Hearing In Supreme Court : जब तक कोई ठोस मामला सामने नहीं आता, अदालत दखल नहीं दे सकती, वक्फ कानून मामले में सीजेआई बीआर गवई की महत्वपूर्ण टिप्पणी

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नई दिल्ली। वक्फ संशोधन कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर आज एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। शीर्ष अदालत के चीफ जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह की बेंच के सामने वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने जोरदार तरीके से दलीलें पेश की। सिब्बल ने एक बार फिर दोहराया कि वक्फ संशोधन कानून के जरिए सरकार वक्फ संपत्तियों को जब्त करना चाहती है। वहीं मुख्य न्यायाधीश गवई ने महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा कि संसद के द्वारा पारित कानूनों में संवैधानिकता की धारणा होती है। कोई कानून संवैधानिक नहीं है, इस बात का जब तक कोई ठोस मामला सामने नहीं आता, अदालत इसमें दखलंदाजी नहीं कर सकती।

सुनवाई शुरू होने के बाद केंद्र की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत से निवेदन किया कि वह अंतरिम आदेश पारित करने के याचिकाओं पर सुनवाई को तीन मुद्दों तक सीमित रखे, जिनमें ‘कोर्ट, यूजर और डीड’ द्वारा घोषित वक्फ संपत्तियों को डि-नोटिफाई करने का बोर्डों का अधिकार भी शामिल है। उन्होंने कहा कि इन तीन मुद्दों पर ही सरकार की ओर से जवाबी हलफनामा दायर किया गया है। वहीं याचिकाकर्ताओं के वकील कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी ने इस बात का विरोध करते हुए कहा कि महत्वपूर्ण कानून पर टुकड़ों में सुनवाई नहीं हो सकती है।

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कपिल सिब्बल ने कहा कि इस मामले में अंतरिम आदेश जारी करने पर सुनवाई होनी चाहिए। सिब्बल ने आगे कहा कि वक्फ के नए कानून में इस बात का प्रावधान है कि अगर कोई वक्फ प्रॉपर्टी को एएसआई के द्वारा संरक्षित घोषित कर दिया जाता है तो उस संपत्ति से वक्फ का अधिकार खत्म हो जाएगा। संभल का जामा मस्जिद ऐसी ही वफ्फ प्रॉपर्टी है। सीजेआई ने सिब्बल ये पूछा कि क्या वक्फ बाय यूजर में भी संपत्ति का पंजीकरण अनिवार्य था। इसपर कपिल सिब्बल ने कहा-हां। सीजेआई बोले, तो इसका मतलब आप कह रहे 1954 से पहले उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ का पंजीकरण आवश्यक नहीं था और 1954 के बाद यह जरूरी हो गया। इसपर सिब्बल ने जवाब में कहा कि इसे लेकर कुछ भ्रम है, संभवत: यह 1923 हो सकता है।

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