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देश की पहली आधार कार्डधारक महिला को नहीं मिला सरकारी योजनाओं का लाभ, हर महीने की कमाई सिर्फ ₹3,500—जानिए क्यों

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भारत में आधार कार्ड की शुरुआत एक क्रांतिकारी कदम थी, जिसकी शुरुआत रंजना सोनवणे के नाम से हुई। 29 सितंबर 2010 को जब उन्हें देश का पहला आधार कार्ड मिला, तो माना गया कि अब उनके जीवन में बदलाव आएगा। लेकिन 14 साल बीत जाने के बाद भी हालात जस के तस हैं। सरकारी योजनाओं से आज भी वे वंचित हैं और गरीबी में जीवन व्यतीत कर रही हैं।

👤 कौन हैं रंजना सोनवणे?

रंजना महाराष्ट्र के नंदुरबार जिले के टेंभली गांव में रहती हैं। 2010 में जब UIDAI ने भारत में आधार योजना की शुरुआत की, तो रंजना को पहला कार्ड मिला। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी के साथ तस्वीर खिंचवाने के बाद उन्हें उम्मीद थी कि उनकी जिंदगी बदल जाएगी। लेकिन वे आज भी दैनिक मजदूरी करके परिवार चला रही हैं।

🚫 लाडकी बहिन योजना से भी वंचित

महाराष्ट्र सरकार की लाडकी बहिन योजना, जो 21 से 65 वर्ष की महिलाओं को ₹1,500 मासिक सहायता देती है, रंजना को इसका लाभ नहीं मिल रहा। वजह – उनका आधार किसी और के बैंक खाते से जुड़ा हुआ है। इसके चलते DBT (डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर) की रकम उनके पास नहीं पहुंचती।

💰 पूरे परिवार की सालाना आय केवल ₹40,000

रंजना के पति खिलौने बेचते हैं और वह खुद मजदूरी करती हैं। पूरे परिवार की सालाना आय सिर्फ ₹40,000 है। तीन बेटों में से एक की नौकरी है, बाकी दो पढ़ाई कर रहे हैं। रंजना कहती हैं, “हम अब बूढ़े हो रहे हैं, कितनी बार दफ्तरों के चक्कर काटें?”

🔄 कई बार शिकायत की, फिर भी समाधान नहीं

इस साल वे 7 बार तालुका कार्यालय जा चुकी हैं। बैंक और अधिकारियों से संपर्क किया, लेकिन किसी ने समाधान नहीं दिया। एक अधिकारी ने बताया कि उनके खाते जॉइंट अकाउंट होने की वजह से आधार किसी गलत अकाउंट से लिंक हो गया है। बैंक ने उन्हें मुंबई शाखा जाने को कहा है – जो उनके लिए संभव नहीं है।

💔 “सरकार से अब कोई उम्मीद नहीं”

रंजना अब कहती हैं, “मैं अब सरकार के भरोसे नहीं हूं। मेरे बेटे मेहनती हैं, वे ही मेरा सहारा हैं।” उनका यह बयान न केवल एक व्यक्ति की निराशा दर्शाता है, बल्कि यह विकास की विफलता पर भी सवाल उठाता है।

🧾 क्या कहते हैं अधिकारी?

अधिकारियों के मुताबिक, आधार लिंकिंग में तकनीकी गड़बड़ी हो सकती है, खासकर जब एक से अधिक खाते या जॉइंट होल्डर्स हों। लेकिन सवाल ये है कि 14 साल बाद भी जब आधार पहचान का मुख्य जरिया बन चुका है, तो ऐसी गड़बड़ियां क्यों हो रही हैं?

रंजना सोनवणे की कहानी यह दिखाती है कि सिर्फ पहचान देना काफी नहीं होता, पहचान के साथ सम्मान और सहायता भी जरूरी है। देश की पहली आधार कार्डधारक होते हुए भी अगर कोई महिला योजनाओं से वंचित है, तो यह सोचने की जरूरत है कि डिजिटल इंडिया का सपना कितनों तक वास्तव में पहुंचा है।

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