संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) के 80वें सत्र में इजरायल और फिलिस्तीन का मुद्दा एक बार फिर चर्चा का विषय बना हुआ है। दुनिया भर के नेताओं ने गाजा में जारी संघर्ष और फिलिस्तीन को एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में मान्यता देने के मुद्दे पर अपने विचार रखे। इस बीच, इंडोनेशिया के राष्ट्रपति प्रोबोवो सुबिआंतो का भाषण विशेष रूप से चर्चा का विषय बना, क्योंकि उन्होंने अपने संबोधन के अंत में संस्कृत में 'ॐ शांति शांति शांति ॐ' का जाप किया। उन्होंने गाजा में शांति सुनिश्चित करने के लिए 20,000 सैनिक भेजने की भी पेशकश की।
गाजा में शांति के लिए इंडोनेशिया तैयार
अपने भाषण में, राष्ट्रपति प्रोबोवो ने वैश्विक शांति, न्याय और समान अवसर का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि "भय, नस्लवाद, घृणा, उत्पीड़न और रंगभेद से प्रेरित मानवीय मूर्खता हमारे साझा भविष्य के लिए खतरा है।" उन्होंने गाजा में शांति और स्थिरता बहाल करने में मदद करने के लिए अपनी सरकार की प्रतिबद्धता दोहराई। प्रोबोवो ने घोषणा की कि इंडोनेशिया गाजा में शांति सुनिश्चित करने के लिए अपने 20,000 सैनिकों को तैनात करने के लिए तैयार है, यह कहते हुए कि "आज इंडोनेशिया संयुक्त राष्ट्र शांति सेना में सबसे बड़े योगदानकर्ताओं में से एक है। हम वहां सेवा देते रहेंगे जहां शांति को संरक्षकों की आवश्यकता है, सिर्फ शब्दों से नहीं, बल्कि जमीनी स्तर पर सैनिकों के साथ।"
हिंसा का जवाब हिंसा नहीं
इजरायल और फिलिस्तीन के बीच दशकों पुराने संघर्ष पर प्रोबोवो सुबिआंतो ने द्वि-राष्ट्र समाधान (Two-State Solution) का समर्थन किया। उन्होंने जोर देकर कहा कि फिलिस्तीन और इजरायल दोनों को स्वतंत्र और सुरक्षित, खतरों और आतंकवाद से मुक्त रहना चाहिए। सुबिआंतो ने कहा, "किसी भी राजनीतिक संघर्ष का जवाब हिंसा से नहीं दिया जा सकता क्योंकि हिंसा से और ज्यादा हिंसा ही पैदा होती है।" उनका यह बयान मौजूदा गाजा संघर्ष की पृष्ठभूमि में काफी महत्वपूर्ण है, जहां दोनों पक्षों को भारी नुकसान हो रहा है।
'ॐ शांति' का संदेश: सद्भाव और सहिष्णुता
अपने 19 मिनट के भाषण के समापन में, राष्ट्रपति प्रोबोवो सुबिआंतो ने 'ॐ शांति शांति शांति ॐ' कहा। उन्होंने नमो बुद्धाय और शालोम (Shalom) जैसे शब्दों का भी प्रयोग किया, जो यहूदी धर्म में शांति का प्रतीक है। यह भाषण उस समय आया है जब इंडोनेशिया, जो दुनिया का सबसे अधिक मुस्लिम आबादी वाला देश है, वैश्विक मंच पर एक शांतिपूर्ण और समावेशी छवि पेश करने की कोशिश कर रहा है।
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि इंडोनेशिया की आबादी 28 करोड़ से अधिक है, जिनमें से लगभग 90% इस्लाम को मानते हैं। ऐसे में, उनके द्वारा विभिन्न धर्मों के शांति संदेशों का उपयोग करना, विशेषकर संयुक्त राष्ट्र जैसे वैश्विक मंच पर, सद्भाव और सहिष्णुता का एक शक्तिशाली प्रतीक है। उनके इस कदम की कई देशों ने सराहना की है, क्योंकि यह एक ऐसे समय में आया है जब दुनिया में धार्मिक और जातीय तनाव बढ़ रहा है।
इस भाषण से यह भी संकेत मिलता है कि इंडोनेशिया, जो पारंपरिक रूप से इजरायल-फिलिस्तीन संघर्ष में फिलिस्तीन का समर्थन करता रहा है, अब एक अधिक संतुलित और रचनात्मक भूमिका निभाने की कोशिश कर रहा है। शांति सेना भेजने की उनकी पेशकश इस बात का प्रमाण है कि वे केवल बयानबाजी तक सीमित नहीं रहना चाहते, बल्कि जमीनी स्तर पर समाधान में योगदान देना चाहते हैं।
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