नई दिल्ली, 06 मई . प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मंगलवार को पाकिस्तान के साथ सिंधु जल समझौते को स्थगित करने के फैसले पर दो टूक कहा कि “भारत का पानी अब भारत के हक में बहेगा, भारत के हक में रुकेगा और भारत के ही काम आएगा.”
पानी के मुद्दे पर पिछली सरकारों पर हमला करते हुए उन्होंने आरोप लगाया कि राज्यों के बीच नदियों के जल को दशकों तक विवाद का मुद्दा बनाये रखा गया. वर्तमान सरकार नदियों को जोड़ने की महत्वकांक्षी योजनाओं से इसका समाधान तलाश रही है. इस संदर्भ में उन्होंने केन-बेतवा लिंक परियोजना और पार्वती-कालीसिंध-चंबल लिंक परियोजना का ज़िक्र करते हुए कहा कि इनसे लाखों किसानों को लाभ पहुंचेगा और सिंचाई की दिक्कत दूर होगी.
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आज एबीपी नेटवर्क के इंडिया@2047 समिट में भाग लिया. इस दौरान अपने संबोधन को उन्होंने उनके नेतृत्व में चल रही सरकार के कठोर निर्णयों और उनके प्रभावों पर केन्द्रित किया. राष्ट्र हित सर्वोपरी को अपनी सरकार की नीति बताते हुए उन्होंने पिछली सरकारों पर कटाक्ष किया, “एक दौर था जब फैसले लेने से पहले सोचा जाता था कि दुनिया क्या कहेगी या वोटबैंक पर असर पड़ेगा. लेकिन आज भारत नीतियों को राष्ट्रहित में तय कर रहा है और उसका लाभ देश को मिल रहा है.”
अपने संबोधन में प्रधानमंत्री ने भारत और ब्रिटेन के बीच हुए मुक्त व्यापार समझौते पर भी बात रखी. उन्होंने इसे भारत के लिए ऐतिहासिक दिन बताया और कहा कि यह समझौता दोनों देशों के लिए एक नया आर्थिक अध्याय जोड़ने वाला है.
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि हमने मानव-केंद्रित वैश्वीकरण का मार्ग चुना है. सच्चा विकास बाजारों की मजबूती से नहीं बल्कि व्यक्ति के स्वाभिमान और सपनों की पूर्ति से आंका जाता है. इसी कारण भारत का ध्यान केवल जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) पर नहीं है, बल्कि जीईपी यानी ‘ग्रॉस एंपावरमेंट ऑफ पीपल’ पर है. अब देश की प्रगति का मापदंड हर व्यक्ति की गरिमा, आत्मनिर्भरता और उसकी आकांक्षाओं की पूर्ति होगा.
प्रधानमंत्री ने आत्मनिर्भरता को भारत की आर्थिक पहचान का हिस्सा बताया और आश्चर्य जताया कि दशकों तक भारत को केवल एक ‘बाजार’ समझा गया. उन्होंने कहा कि अब वह सोच बदल चुकी है. भारत आज अनेक क्षेत्रों में निर्माता के रूप में उभर रहा है.
उन्होंने परंपरा और तकनीक के तालमेल पर भी बल दिया. मोदी ने कहा कि भारत अब डिजिटल लेन-देन के मामले में विश्व के शीर्ष देशों में शामिल है. साथ ही योग और आयुर्वेद जैसी पारंपरिक विधाओं को भी वैश्विक स्तर पर पहचान मिल रही है. प्रधानमंत्री के इस दृष्टिकोण ने यह स्पष्ट किया कि भारत अब सिर्फ आर्थिक शक्ति नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से सशक्त राष्ट्र बनने की ओर अग्रसर है.
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/ अनूप शर्मा
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