बिछड़े थे जिसकी वजह से राम जी, मैं उस हिरण को कहानी से खींच लूं: राशिद
गाजियाबाद, 7 अप्रैल . सुप्रसिद्ध शायर वसीम नादिर ने कहा कि आज अदब के सामने कई तरह के संकट हैं. महफ़िल ए बारादरी में अध्यक्षीय वक्तव्य में उन्होंने कहा कि अदबी समाज के लिए ऐसी महफ़िलों की दरकार है. उन्होंने कहा कि नई पीढ़ी की अदबी परवरिश नहीं हो पा रही है. उन्होंने कहा कि यहां पढ़ी गई रचनाओं को सुनकर उनका यकीन मजबूत हुआ है. कवयित्री पूनम मीरा ने कहा कि बारादरी गंगा जमुनी संस्कृति की मिसाल बन गई है. उन्होंने कहा कि ऐसे मंच अदब को जिंदा रखते हैं. इस आयोजन की खास बात यह रही कि अधिकांश रचनाकारों ने गीत, कविता, दोहे के माध्यम से मर्यादा पुरुषोत्तम को याद किया.
नेहरू नगर स्थित सिल्वर लाइन प्रेस्टीज स्कूल में आयोजित कार्यक्रम का शुभारंभ आशीष मित्तल की सरस्वती वंदना से हुआ. शुभ्रा पालीवाल के गीत की पंक्तियों चाहे ये सूरज कहीं छुप ही जाए, चाहे ये चन्दा गगन पे न आए, ले हाथ, हाथों में इक़रार करना, दिल ये दिया है तो बस प्यार करना ने कार्यक्रम को शुरू में ही ऊंचाई प्रदान कर दी. शायर असलम राशिद ने फरमाया रफ्तार आंसुओं की रवानी से खींच लूं, मैं चाहता हूं दर्द कहानी से खींच लूं. बिछड़े थे जिसकी वजह से राम जी, मैं उस हिरण को कहानी से खींच लूं. शायर वसीम नादिर ने अपने कलाम पर भरपूर दाद बटोरी. उन्होंने फ़रमाया कभी कपड़े बदलता है कभी लहजा बदलता है, मगर इन कोशिशों से क्या कहीं शजरा बदलता है. तुम्हारे बाद अब जिसका भी जी चाहे मुझे रख ले, जनाजा अपनी मर्जी से कहां कांधा बदलता है. मेरी आंखों की पहली और आखिरी हद है तेरा चेहरा, मैं वो पागल नहीं हूं रोज़ जो रस्ता बदलता है.
/ फरमान अली
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